जयपुर के जवाहर कला केंद्र की डायरेक्टर जनरल पूजा सूद के कार्य-व्यवहार से नाराज कलाकारों ने उन्हें हटाए जाने के लिए राजस्थान की नई सरकार पर दबाव बनाया

राजस्थान में सत्ता परिवर्तन होते ही जयपुर स्थित जवाहर कला केंद्र की डायरेक्टर जनरल पूजा सूद को पद से हटाए जाने की माँग जोर पकड़ने लगी है । पूजा सूद को भाजपा की कठपुतली के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जवाहर कला केंद्र के संचालन बोर्ड में विश्वविख्यात शिल्पकार अनीश कपूर को शामिल करने के दो दिन बाद ही हटा दिए जाने के मामले में कलाकार बिरादरी में पूजा सूद के खिलाफ गहरी नाराजगी पैदा हुई थी । दरअसल अनीश कपूर की नियुक्ति के साथ ही भाजपा सरकार की जानकारी में आया कि अनीश कपूर ने ब्रिटिश अखबार 'द गॉर्जियन' में एक लेख लिख कर विचारों व अभिव्यक्ति की भिन्नता को लेकर मोदी सरकार के असहिष्णु रवैये की आलोचना की है । यह जानकारी मिलते ही अनीश कपूर की नियुक्ति को तत्काल रद्द कर दिया गया । इसके अलावा, जवाहर कला केंद्र में आयोजित हुए जयपुर ऑर्ट समिट में प्रख्यात कलाकार चिंतन उपाध्याय के गाय को लेकर बनाए और प्रदर्शित किए गए एक शिल्प को 'धार्मिक भावनाएँ भड़काने' वाला बताते हुए पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में न सिर्फ उक्त शिल्प नष्ट कर दिया गया, बल्कि चिंतन उपाध्याय के साथ बदतमीजी भी की गई और उन्हें कुछेक घंटों के लिए कैद में भी रखा गया । अभी हाल ही में संपन्न हुए पहले इंडियन सिरेमिक त्रियनाले में प्रदर्शित एक संस्थापन के साथ छेड़छाड़ की गई । इन मामलों में जवाहर कला केंद्र की डायरेक्टर जनरल होने के बावजूद पूजा सूद चूँकि मूक दर्शक बनी रहीं, इसलिए कलाकारों को इन मामलों में उनकी मिलीभगत और उनका समर्थन दिखा और इसी कारण से कलाकारों के बीच पूजा सूद के प्रति नाराजगी पैदा हुई । 
पूजा सूद के रवैये का शिकार बनने से जवाहर कला केंद्र की इमारत के डिजाइनर प्रख्यात ऑर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया तक नहीं बच पाए । उल्लेखनीय है कि जवाहर कला केंद्र की इमारत का डिजाइन चार्ल्स कोरिया ने 1986 में ही तैयार किया था, जिस पर आधारित इमारत 1992 में बन कर तैयार हुई थी; विश्वविख्यात भारतीय ऑर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया अपनी बनाई इमारतों में परंपरागत तरीकों और सामग्रियों के इस्तेमाल के लिए जाने जाते हैं, और उन्होंने शीशे का कभी इस्तेमाल नहीं किया । पूजा सूद ने लेकिन नवीनीकरण के नाम पर केंद्र में जगह जगह शीशे लगवा दिए हैं, जिसके चलते चार्ल्स कोरिया की बनाई इमारतों का जाना/पहचाना सौंदर्य खत्म हो गया है । पूजा सूद की शह पर जवाहर कला केंद्र में पत्रकारों व फोटोग्राफर्स के लिए कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं । कलाकारों तक के लिए कई तरह की शर्तें तय कर दी गईं हैं, और उनके लिए निर्देश जारी किए गए हैं कि उन्हें क्या क्या 'करना' है, और क्या क्या नहीं करना है । कलाकारों के बीच पूजा सूद के कार्य-व्यवहार को लेकर ही रोष नहीं है, बल्कि नियमों की अनदेखी करके की गई उनकी नियुक्ति पर भी ऐतराज है । उल्लेखनीय है कि जवाहर कला केंद्र के संविधान में तीन सदस्यीय बोर्ड का प्रावधान है, जिसे खत्म करके पूजा सूद को डायरेक्टर जनरल बना दिया गया - जो कि संविधान में मान्य ही नहीं है । आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी की पिछली सरकार में अपनी पहुँच के बलबूते पूजा सूद ने संविधान की अनदेखी करके अपने आपको जवाहर कला केंद्र में सर्वेसर्वा बना लिया, और उनके व्यवहार-रवैये के सबसे बड़े शिकार कलाकार ही हुए हैं ।
मजे की बात यह है कि जयपुर/राजस्थान के कलाकारों की नाराजगी का शिकार बनीं पूजा सूद का जवाहर कला केंद्र में नियुक्ति मिलने के समय कलाकारों की ही तरफ से जोरशोर से स्वागत किया गया था । दरसअल 'खोज इंटरनेशनल ऑर्टिस्ट एसोसिएशन' की संस्थापक सदस्य और डायरेक्टर के रूप में पूजा सूद की जो पहचान रही है, उससे जवाहर कला केंद्र से जुड़े कलाकारों को उम्मीद बनी थी कि पूजा सूद जवाहर कला केंद्र को भी एक नई पहचान देंगी । उनकी नियुक्ति होने के पहले तक जवाहर कला केंद्र चूँकि नौकरशाहों के भरोसे ही था, और पूजा सूद के रूप में केंद्र को पहली बार एक ऑर्ट क्यूरेटर तथा ऑर्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट मिला था - तो कलाकारों को भी उम्मीद बँधी थी कि जवाहर कला केंद्र में ऑर्टिस्ट-फ्रैंडली माहौल बनेगा । कलाकारों को लेकिन जल्दी ही समझ में आ गया कि कलाकारों के साथ पूजा सूद का रवैया तो नौकरशाहों से भी खराब है । भारतीय कला जगत में पूजा सूद का बड़ा नाम है । कई बड़े और नामी समकालीन भारतीय कलाकारों के साथ और उनके लिए पूजा सूद ने काम किया है, और सिर्फ खोज इंटरनेशनल आर्टिस्ट्स एसोसिएशन ही नहीं, बल्कि कोच्ची-मुज़िरिस बिएनाले तथा इंडिया ऑर्ट फेयर जैसे बड़े कला आयोजनों में उनकी सक्रिय भूमिका रही है - जिसे जानते/बूझते हुए ही जवाहर कला केंद्र से जुड़े कलाकारों ने उनसे बड़ी बड़ी उम्मीदें लगाई थीं । जवाहर कला केंद्र में उन्होंने कई प्रमुख आयोजन किए भी - जिनकी गुणवत्ता व प्रासंगिकता को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन जिनके कारण जवाहर कला केंद्र की पहचान के व्यापक होने को लेकर कोई संदेह/सवाल नहीं हो सकता है । लेकिन अनीस कपूर और चिंतन उपाध्याय जैसे वरिष्ठ और प्रख्यात कलाकारों के साथ जो बीती और फिर केंद्र से जुड़े कलाकारों को दिन-प्रतिदिन के कार्य-व्यवहार में जिन स्थितियों का सामना करना पड़ा, उससे स्पष्ट हो गया कि पूजा सूद क्यूरेटर भले ही हों, लेकिन कला और कलाकारों का सम्मान करना और उनके लिए सम्मानजनक माहौल बनाना उनके बस की बात नहीं है । कलाकारों का मानना/कहना है कि प्रदेश में जब जनविरोधी और लोगों की परवाह न करने वाली सरकार का पतन हो चुका है, तो जवाहर कला केंद्र में भी कला और कलाकारों के लिए अनुकूल माहौल बनना चाहिए और पिछली सरकार की मेहरबानी से बैठे प्रमुख पदाधिकारियों को हटाया जाना चाहिए । पूजा सूद के खिलाफ व्यक्त होने वाली नाराजगी इस बहस को भी जन्म देती है कि कला क्षेत्र से जुड़े लोग अच्छे प्रशासक आखिर क्यों नहीं बन पाते हैं, और अनीस कपूर व चिंतन उपाध्याय जैसे कलाकारों का संदर्भ लेकर कहें कि जब कला व कलाकारों को उनके सहयोग/समर्थन की जरूरत होती है, तब वह कला और कलाकारों की बजाये अपने राजनीतिक आकाओं के साथ खड़े क्यों दिखते हैं ? 

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