इटली के पर्लेमो से लेकर दिल्ली व मुंबई में हाल के दिनों में कला को लेकर जो हुआ है, वह अपनी संरचना और व्यवस्था में कोई बहुत नया या अनोखा न होते हुए भी उम्मीद जगाने तथा रास्ता दिखाने वाला जरूर है
पिछले पाँच-छह दशकों में कला की दुनिया में परंपरागत माध्यमों से इतर नए माध्यमों का जो विस्तार हुआ है, और उसमें तकनीकी विकास ने जो योगदान दिया है - उसने कला के विश्लेषण व अवलोकन के प्रतिमानों को तो अस्थिर किया ही है, कला के देखने/समझने के पूरे फ्रेम को भी बदल दिया है । चाक्षुक कला में नित नए होते प्रयोगों ने दर्शकों और कला-प्रेक्षकों को लगातार चमत्कृत व अचम्भित किया है, जिसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है और वह यह कि कला को जरूरत के रूप में देखने की बजाये प्रदर्शन और फैशन की चीज मान लिया गया; और कला को सनसनी फैलाने का जरिया मान लेने की प्रवृत्ति बढ़ी । इस वजह से कला की समाज से दूरी बनती व बढ़ती गई । इस कारण से उन कलाकारों के सामने दिक्कत आई जो दर्शकों व कला-प्रेक्षकों से संवाद बनाना/करना चाहते हैं; और सच यह भी है कि अलग अलग कारणों से हर कलाकार ही संवाद बनाना चाहता है । चूँकि हर समस्या, अपने हल के प्रयासों की प्रेरणास्रोत भी होती है - इसलिए समस्याएँ पैदा हुईं, तो उनके हल के प्रयास भी तेज हुए और इन प्रयासों को इंस्टालेशन व पब्लिक ऑर्ट जैसे कला-रूपों ने भी बढ़ावा दिया । हाल ही के दिनों म...