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रजा का अपनी जड़ों के साथ संबंध मानो उनकी चेतना का स्थायी भाव था, जो उनकी कला की रंग-परतों के नीचे यूँ भी अंततःसलिल रही है

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सैयद हैदर रजा की इच्छानुसार उनका अंतिम संस्कार मध्य प्रदेश के बाबरिआ में किया जाएगा । मध्य प्रदेश के पूर्व-मध्य क्षेत्र के आदिवासी बहुल जिले मांडला के बाबरिआ में ही 1922 में उनका जन्म हुआ था । अपने कामकाजी जीवन का अधिकांश समय पेरिस में व्यतीत करने वाले रजा की यह इच्छा अपनी जड़ों से उनके जीवनग्राही व सहज संबंध होने की एक और अभिव्यक्ति है, जो उनकी कला की रंग-परतों के नीचे यूँ भी अंततःसलिल रही है । अपनी जड़ों के साथ उनका संबंध मानो उनकी चेतना का स्थायी भाव बना रहा था - जिसे वह अपने अंतिम संस्कार तक निभाना चाहते थे । अपनी रचना-यात्रा पर बात करते हुए उन्होंने कहा भी था : 'बचपन की जो स्मृति मेरे मन में सबसे गहरी बसी हुई है, वह है हिंदुस्तानी जंगल का आतंक और सम्मोहन । हम लोग नर्मदा नदी के उदगम के पास ही रहा करते थे, जो मध्यप्रदेश के सबसे घने जंगलों के बीचोंबीच था । उन बनैली रातों में, मैं चौतरफा मायावी आकृतियों और आवाजों से घिर जाता था । ऐसे में भी कभी-कभार आदिवासी गोंडों का नृत्य पास ही कहीं मनुष्य लोक के होने का आश्वासन रचता हुआ मन को राहत पहुँचाता था । पर सचमुच सुरक्...