अर्थपूर्ण सृजनात्मकता के जरिये मधुबनी चित्रकला की अनगढ़ता के सौंदर्य और सरलता के वैशिष्ट्य को श्वेता झा ने अपनी कला में जिस प्रभावी तरीके से साधा और अभिव्यक्त किया है, 'दिव्य शक्ति' पेंटिंग उसका एक अनूठा उदाहरण है
![Image](https://1.bp.blogspot.com/-HouZEWFMEAY/V-TbSKK6j9I/AAAAAAAAAIM/pIV64HZ4tIATWv5wVfrcthxx_LBHmaB7QCLcB/s400/SwetaJha.jpg)
मधुबनी कला की प्रखर चितेरी श्वेता झा की 'दिव्य शक्ति' शीर्षक पेंटिंग की तस्वीर देखते हुए मुझे लियोनार्दो दा विंची की एक प्रसिद्ध पंक्ति सहसा याद हो आई कि 'हमें जो दिखायी देता है, उस पर यक़ीन नहीं करना चाहिए; अपितु, जो दिखायी देता है उसे समझना चाहिए ।' श्वेता ने सिंगापुर में रहते हुए सिंगापुर की प्रगति को देखा, लेकिन जैसे ही उन्होंने इस प्रगति को समझने की कोशिश की - वैसे ही इस प्रगति के साथ छिपे 'अँधेरे' को भी उन्होंने पहचान लिया । हर देश और समाज ने प्रगति की कीमत चुकाई है; उसी तर्ज पर तमाम प्रगति के बावजूद सिंगापुर जिस तरह आत्महीन, स्मृतिहीन और व्यक्तित्वहीन इकाइयों का समूह बनता जा रहा है - उसी पर एक सचेत और संवेदनशील प्रतिक्रिया के रूप में श्वेता ने 'दिव्य शक्ति' को रचा है । कह सकते हैं कि 'दिव्य शक्ति' के रूप में श्वेता ने दरअसल अपने परिवेश को ही रचा है । किसी भी कलाकार का परिवेश बाहरी दुनिया का यथार्थ भर नहीं होता है, जिसमें वह जीता है; उसका परिवेश तभी बन पाता है जब वह अपना बाहरीपन छोड़ कर उसके भीतर जीने लगता है । पिछले कुछेक व