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Showing posts from 2015

कविता सृजन ही नहीं एक कलाकृति भी है

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विजेंद्र यूँ तो एक लेखक और चित्रकार होने के साथ साथ मार्क्सवादी विचारक भी हैं - किंतु उन्हें पहचान, प्रसिद्धी और बुलंदी उनके कवि-कर्म से मिली है । लेखक के रूप में हालाँकि उनकी कुछेक पद्य रचनाएँ, डायरी और नाटक भी प्रकाशित हैं - पर उनकी पुस्तकों में कविता-संग्रहों की ही बहुतायत है । वह 1956 से कविताएँ लिख रहे हैं; और इस तरह अगले वर्ष वह अपने कविता-जीवन के साठ वर्ष पूरे करेंगे । उनकी कविताओं को पढ़ते हुए सहज ही आभास होता है कि उनके लिए कविता हृदय के भावों का स्वाभाविक उच्छलन है । उनकी कविताएँ सघन अनुभूति और गहराई से उत्पन्न हैं, जिनमें जीवन के तमाम अंतर्विरोधों और विद्रूपताओं के बीच मनुष्यता को बचाए रखने का आह्वान है । विविधता और बहुआयामिता की सामर्थ्य से परिचित कराता विजेंद्र का कविता-संसार उनके सरोकारों व दृष्टि-संपन्नता को भी अभिव्यक्त करता है । यहाँ प्रस्तुत उनका एक आलेख और उनकी दो कविताएँ उनके रचना-कर्म की एक झलक भर का अहसास कराती हैं : ।। कविता बिम्बों में संज्ञान का मूर्तन ।।    कविता जीवन, जगत और प्रकृति का पुनर्सृजन है । इसके पीछे मेरे क्रियाशील चित्त की प्रम

वाल्ट व्हिटमैन की एक कविता

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'सदानीरा' के नए अंक में  अमेरिकन निबंधकार, पत्रकार और कवि वाल्टर 'वाल्ट' व्हिटमैन (31 मई 1819 - 26 मार्च 1892) की कविताएँ पढ़ीं तो अमेरिका के आभिजात्यवादी धारा की कहानी याद हो आई,  जिसमें अपने समय के नैतिक दृष्टि से पतनोन्मुख और अराजक समाज के उपचार के लिए संस्कृति और विशेषकर कविता को आवश्यक माना गया था ।  उक्त धारा मुख्य रूप से प्रकृतवाद तथा जड़ यथार्थवाद के विरूद्ध आत्मपरक तथा कलात्मक प्रवृत्तियों का खुला व प्रखर विद्रोह थी । इसके पीछे मान्यता थी कि घटनाओं, व्यक्तियों तथा बाह्य जगत के पदार्थों की अपेक्षा मानवीय संवेदनाएँ, मनोभाव तथा अनुभव अधिक महत्वपूर्ण होते हैं और इन्हें सामान्य व यथार्थवादी भाषा तथा वर्णनों के माध्यम से संप्रेषित नहीं किया जा सकता है ।  यही मानते हुए उस दौर के लेखकों/कवियों ने स्थितियों को प्रतीक के रूप में लिया - और उसके जरिए उन्होंने स्वप्नों, संवेदनाओं तथा अमूर्त विचारों की व्यंजना की । वाल्ट व्हिटमैन ने अपनी कविताओं के माध्यम से उस दौर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पारंपरिक साहित्य-रूपों को त्यागते हुए कविता के शिल्प को भी बदला ।  'सदानीर

संजय कुंदन की कविताएँ

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पहल 99 में प्रकाशित संजय कुंदन की कविताएँ रोजमर्रा के संसार में छिपी रहस्यमयता को हमारे सामने उपलब्ध करती हैं और बताती हैं कि अपने आसपास की तथा अपने जीवन से जुड़ी जिन तमाम चीजों व स्थितियों को हम प्रायः बहुत साधारण मानते/समझते हैं तथा अनदेखा कर देते हैं, वास्तव में उन्हीं के भीतर हमारा समूचा जीवन समाया होता है । उनकी कविताओं में गहरी नैतिक सजगता का परिचय मिलता है और एक ऐसी काव्य संवेदना का अहसास होता है जो विडम्बना के परे जाते हुए किसी बुनियादी सच्चाई के प्रति अपनी मूल आस्था को भी रच सकती है ।    ।। बिल्डर ऐसे आते हैं ।।   बिल्डर आते बड़ी-बड़ी मशीनों बैनरों और पोस्टरों के साथ वे आते और शहर का एक मैदान रातोंरात घिर जाता दीवार से सड़क किनारे खड़ा होने लगता मिट्टी का पहाड़ कुछ रंगीन छातों के नीचे बैठे जाते उनके कारिंदे रात भर खुदाई करती उनकी मशीन ठक् ठक् ठक् ठक् करती हमारी नींद में भी सूराख हमारे सपनों की दरारों में घुसे चले आते हैं बिल्डर मोबाइल पर भेजते संदेश पर संदेश अखबारों में डालते रहते पर्चियां करते रहते पीछा निरंतर टीवी खोलते ही

लोकमित्र गौतम की कविताएँ

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राजनीतिक व सामाजिक विषयों पर प्रखर टिप्पणियों के लिए पहचाने जाने वाले लोकमित्र गौतम के अनुभवों की विविधता और विचार व समझ की गहराई का परिचय कभी-कभार पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली उनकी कविताओं के जरिये भी मिलता रहा है । इसीलिए उनके पहले कविता संग्रह 'मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊँगा …' के प्रकाशन की सूचना ने उत्साहित किया । नितांत सरल संवेदना का अहसास करातीं लोकमित्र गौतम की कविताओं में अनुभव का सृजनात्मक प्रतिफलन विचारोत्तेजक तो है ही, साथ ही आस्वाद के स्तर पर प्रसरणशील भी है । इस संग्रह में प्रकाशित उनकी कविताएँ कुछ लंबी हैं और इसी कारण से आख्यानपरक हैं, जिसके जरिये वह चित्र खड़ा करते हैं और अपनी बात कहते हैं । कथात्मक बुनावट का आभास सा कराती उनकी कविताओं में कहीं कहीं हम अपने आप को विवरणों के जंजाल से घिरा हुआ सा पाते तो हैं, किंतु जैसे जैसे कविता आगे बढ़ती है हम पाते हैं कि जिसे हम विवरणों का जंजाल समझ रहे थे वह दरअसल सामाजिक तत्वों और उनसे प्रभावित मनोदशाओं का रचनात्मक संश्लेष है । लोकमित्र अपनी अभिव्यक्ति की परिधि में मौजूदा समय की जटिलता और संश्लिष्टता

गुलाम मोहम्मद शेख की दो कविताएँ

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सुरेंद्रनगर, गुजरात में 1937 में जन्में गुलाम मोहम्मद शेख देश-दुनिया में मूलरूप से एक चित्रकार के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । चित्रकार के रूप में उनकी जो ख्याति है और उन्होंने जो काम किया है, उसके कारण ही उन्हें अन्य कई पुरुस्कारों व सम्मानों के साथ साथ पद्मश्री और पद्मभूषण की उपाधियाँ भी मिली है । 1983 में पद्मश्री और 2014 में पद्मभूषण की उपाधि पाने वाले गुलाम मोहम्मद शेख देश-दुनिया में भले ही एक चित्रकार के रूप में जाने जाते हों, लेकिन गुजराती साहित्य में एक लेखक और एक कवि के रूप में भी उनकी खासी प्रतिष्ठा है । चित्र-रचना के साथ-साथ कविता-लेखन में समान अधिकार रखने वाले गुलाम मोहम्मद शेख की यहाँ प्रस्तुत मूल गुजराती में लिखीं कविताओं का हिंदी अनुवाद ज्योत्स्ना मिलन ने किया है । कविताओं के साथ प्रकाशित चित्र गुलाम मोहम्मद शेख की पेंटिंग्स के हैं | ।। दिल्ली ।। टूटे टिक्कड़ जैसे किले पर कच्ची मूली के स्वाद की सी धूप तुगलकाबाद के खंडहरों में घास और पत्थरों का संवनन परछाइयों में कमान, कमान में परछाइयाँ; खिड़की मस्जिद आँखों को बेधकर सुई की मान