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Showing posts from October, 2019

मृदविका की नृत्य प्रस्तुति नंदिता की कला यात्रा को सीधे ट्रांसलेट करने की बजाये एक अलग अनुभव-दृश्य की तरह अभिव्यक्त करती है और ऐसा करते हुए वह नंदिता के रचना-संसार की व्यापकता व शाश्वतता को रेखांकित करती है

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पिछले दिनों पहले नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में और फिर गुरुग्राम की एक ऑर्ट गैलरी में नंदिता रिची की पेंटिंग्स तथा उनकी नृत्यांगना पुत्री मृदविका की नृत्य-प्रस्तुति के जरिये चित्रकला और नृत्य कला के अंतर्संबंधों का एक अनोखा नजारा देखने को मिला ।  नंदिता एक लैंडस्केप पेंटर हैं, और प्रकृति चित्रण को लेकर समकालीन कला जगत में उनकी खास पहचान है । उनके लैंडस्केप वास्तविक से दिखते जरूर हैं, लेकिन वह वास्तविक नहीं हैं क्योंकि वह किसी जगह विशेष का आभास नहीं देते हैं । उनके लैंडस्केप की जड़ें प्रकृति में हैं, लेकिन जिन्हें उन्होंने अपनी कल्पनाशीलता से अन्वेषित (इनवेंट) किया है । मृदविका एक प्रशिक्षित नृत्यांगना हैं, और इंडियन-ऑस्ट्रेलियन कोरियोग्राफर एश्ले लोबो की कंपनी डांसवर्क्स अकेडमी की वरिष्ठ सदस्या हैं । नंदिता व मृदविका के काम की 'प्रकृति' में बड़ा अंतर तो है ही, स्थिति यह भी थी कि दोनों कला माध्यमों के बीच अंतर्संबंध को स्थापित करने का निर्वाह मृदविका को ही करना था; नंदिता को तो जो करना था, वह कर चुकी थीं और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान ...

भारतीय रंगमंच को नई और आधुनिक पहचान देने वाले इब्राहिम अल्काज़ी की पेंटिग्स व ड्राइंग्स की प्रदर्शनी उनके एक और सृजनात्मक रूप से परिचित करवाने का काम करेगी

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ऑर्ट हैरिटेज गैलरी में 15 अक्टूबर की शाम को इब्राहिम अल्काज़ी की पेंटिंग्स व ड्राइंग्स की एक बड़ी प्रदर्शनी का उद्घाटन हो रहा है । इस प्रदर्शनी में 1940 के दशक के अंतिम वर्षों से लेकर 1970 के दशक के आरंभिक वर्षों के बीच बनाई गईं उनकी पेंटिंग्स व ड्राइंग्स प्रदर्शित होंगी ।  पद्मश्री (1966), पद्म भूषण (1991) व पद्म बिभूषण (2010) इब्राहिम अल्काज़ी को भारतीय रंगमंच को आधुनिक रूप व पहचान देने वाले गिने-चुने लोगों में देखा/पहचाना जाता है । दरअसल इसीलिए उनके चित्रों की होने वाली प्रदर्शनी एक रोमांच पैदा करती है कि रंगमंच के एक पुरोधा ने चित्रकला को कैसे बरता होगा ? यह सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जिस समयावधि में बनाई गईं उनकी पेंटिंग्स व ड्राइंग्स प्रदर्शित हो रही हैं, उस समयावधि में इब्राहिम अल्काज़ी भारतीय रंगमंच को नई पहचान देने के खासे चुनौतीपूर्ण व मुश्किल काम में जुटे हुए थे । 18 अक्टूबर 1925 को पुणे में जन्मे इब्राहिम अल्काज़ी मुंबई के सेंट जेवियर कॉलिज में पढ़ने के दौरान सुल्तान 'बॉबी' पदमसी के थियेटर ग्रुप के स...