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संजय कुंदन की कविताएँ

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पहल 99 में प्रकाशित संजय कुंदन की कविताएँ रोजमर्रा के संसार में छिपी रहस्यमयता को हमारे सामने उपलब्ध करती हैं और बताती हैं कि अपने आसपास की तथा अपने जीवन से जुड़ी जिन तमाम चीजों व स्थितियों को हम प्रायः बहुत साधारण मानते/समझते हैं तथा अनदेखा कर देते हैं, वास्तव में उन्हीं के भीतर हमारा समूचा जीवन समाया होता है । उनकी कविताओं में गहरी नैतिक सजगता का परिचय मिलता है और एक ऐसी काव्य संवेदना का अहसास होता है जो विडम्बना के परे जाते हुए किसी बुनियादी सच्चाई के प्रति अपनी मूल आस्था को भी रच सकती है ।    ।। बिल्डर ऐसे आते हैं ।।   बिल्डर आते बड़ी-बड़ी मशीनों बैनरों और पोस्टरों के साथ वे आते और शहर का एक मैदान रातोंरात घिर जाता दीवार से सड़क किनारे खड़ा होने लगता मिट्टी का पहाड़ कुछ रंगीन छातों के नीचे बैठे जाते उनके कारिंदे रात भर खुदाई करती उनकी मशीन ठक् ठक् ठक् ठक् करती हमारी नींद में भी सूराख हमारे सपनों की दरारों में घुसे चले आते हैं बिल्डर मोबाइल पर भेजते संदेश पर संदेश अखबारों में डालते रहते पर्चियां करते रहते पीछा निरंतर टीवी खोलते ही