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Showing posts from May, 2020

कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते पैदा हुई समस्याओं और उनसे निपटने की कोशिशों ने गैलरीज प्रबंधकों व कला क्षेत्र के अन्य कारोबारियों को अच्छे नतीजे तो दिए हैं, लेकिन उससे कला बाजार की डायनामिक्स बदलने के संकेत भी मिल रहे हैं

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कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते बने हालात कला जगत को झटका देने वाले तथा उभरते कलाकारों के भविष्य को असुरक्षित करने व असमंजस में डालने वाले भले दिख रहे हों, लेकिन व्यावसायिक ऑर्ट गैलरीज तथा कला के अन्य कारोबारियों के लिए कोई बहुत बुरे साबित नहीं रहे हैं । ऑर्ट गैलरीज तथा कला संस्थाओं को झटके जरूर लगे हैं, और उन्हें अपने महत्त्वाकांक्षी व प्रमुख आयोजनों को रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, लेकिन लॉकडाउन के दौरान भी बड़ी व्यावसायिक भारतीय ऑर्ट गैलरीज ने कलाकृतियों की ठीकठाक बिक्री की है । डीएजी गैलरी, जो पहले देहली ऑर्ट गैलरी के नाम से जानी/पहचानी जाती थी, द्वारा लॉकडाउन के दौरान 50 से अधिक कलाकृतियाँ बेचे जाने की सूचना है । लेटीट्यूड 28 गैलरी की प्रिंट्स की ऑनलाइन प्रदर्शनी में भी कई काम बिकने की चर्चा है । वर्चुअल स्पेस में अभी चल रही समूह प्रदर्शनी में एक्सपेरीमेंटर गैलरी के चार काम बिकने की जानकारी है । खास बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान बिकी पेंटिंग्स और प्रिंट्स के दाम भी ठीकठाक ही मिले हैं । इसी से, गैलरीज के प्रबंधकों और कला कारोबारियों को विश्वास हो चला है कि कोरोना वायरस के

कला की कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त न कर पाने की कमी को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने लिये एक अवसर में बदल दिया और रंग व रेखाओं की अभिव्यक्ति में उन्होंने नये और आवेगपूर्ण प्रयोग किए

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रवीन्द्रनाथ टैगोर यदि आज जीवित होते तो अपना 159वाँ जन्मदिन मना रहे होते । 7 मई 1861 को जन्मे रवीन्द्रनाथ ने अस्सी वर्ष की उम्र पाई थी । 7 अगस्त 1941 को अंतिम साँस लेने से पहले एक हजार से ज्यादा कविताओं, दो हजार से ज्यादा गीतों, करीब दो दर्जन नाटकों, आठ उपन्यासों, कहानियों के आठ से ज्यादा संकलनों, राजनीतिक-सामाजिक-धार्मिक-साहित्यिक विषयों पर लिखे तमाम लेखों की रचना करने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर को जानने वाले लोगों में बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि उन्होंने करीब 2500 पेंटिंग्स व स्केचेज भी बनाए हैं, जिनमें से 1500 से कुछ ज्यादा शांतिनिकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविधालय के संग्रहालय में देखे जा सकते हैं । वर्ष 1913 में 52 वर्ष की उम्र में साहित्य के लिये नोबेल पुरुस्कार प्राप्त करने वाले रवीन्द्रनाथ के चित्रों की पहली प्रदर्शनी वर्ष 1930 में जब हुई थी, तब वह 69 वर्ष के थे । दिलचस्प संयोग है कि 90 वर्ष पहले पेरिस में हुई रवीन्द्रनाथ के चित्रों की यह पहली प्रदर्शनी इन्हीं दिनों हुई थी । 5 मई से 19 मई 1930 के बीच हुई प्रदर्शनी की इतनी जोरदार चर्चा हुई कि इसके तुरंत बाद यह प्रदर्शनी कई यू