आर्नल्ड हाउजर का कहना है कि 'प्रत्येक कृति और कृति का प्रत्येक अंग मौलिकता और रूढ़ि, नवीनता और परंपरा के बीच टकराव के परिणामस्वरूप आकार ग्रहण करता है'
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विख्यात हंगेरियन कला इतिहासकार आर्नल्ड हाउजर ने सामाजिक ताने-बाने के कला पर पड़ने वाले प्रभावों का न सिर्फ गंभीर विवेचन ही किया है, बल्कि कला को समझने व व्याख्यायित करने के लिए उसे जरूरी अवयव के रूप में भी देखा/पहचाना है । 'द सोशल हिस्ट्री ऑफ ऑर्ट एंड लिटरेचर' शीर्षक उनकी किताब कला को इतिहास, मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के नजरिए से पहचानने/परखने के जो तर्क देती है - उसने कला संबंधी चिंतनधारा को ही बदल देने का काम किया है । इसके बाद आईं उनकी 'द फिलॉसिफी ऑफ ऑर्ट हिस्ट्री' तथा 'द सोशियोलॉजी ऑफ ऑर्ट' शीर्षक किताबों ने तो कला के रचनात्मक व समाजशास्त्रीय प्रश्नों को लेकर छिड़ी बहस में उत्तेजक हस्तक्षेप किया । उनकी और भी कई किताबें हैं । उनके समस्त लेखन में उन स्रोतों की ओर भी संकेत मिलते हैं जहाँ से सार्थक रचनात्मकता की एक नई पहचान को उभरने का अवसर मिलता है - दरअसल इसी कारण से उनके लेखन को रचना और आलोचना, दोनों के मामले में महत्ता मिली । 'द सोशल हिस्ट्री ऑफ ऑर्ट एंड लिटरेचर' के एक प्रमुख अंश का हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तु