नंदिता रिची की पेंटिंग्स उर्फ़ उम्मीदों व सपनों से भरी एक हरी-भरी दुनिया के नष्ट-भ्रष्ट होने की उदासी, चिंता और आशंका की अभिव्यक्ति

नंदिता रिची के लैंडस्केप चित्र पहली नजर में आकर्षित करते हैं और इस तरह आकर्षित करते हैं कि अपने सामने रोक लेते हैं; लेकिन देर तक ध्यान से देखे जाने पर वह एक रहस्यमय, फंतासी लोक की तरह का अहसास करवाते हैं और एक खास तरह की आशंका (एंग्जाइटी) के तत्वों से बनते अंतर्विरोधी वातावरण के चलते वह उल्लेखनीय लगने लगते हैं । उनकी पेंटिंग्स में रंग प्रायः अंतर्विरोधी संगत करते हैं - एक तरफ तो वह बहुत चटख चमक लिए दिखेंगे, लेकिन साथ-साथ ही वह पनीले और हल्के पड़ते नजर आयेंगे; और इस तरह वह एक सुंदर व रहस्यमयी नजर आने वाले वातावरण में चिंता, उदासी व आशंका के सूक्ष्म संकेतों को और गहरा करते से लगेंगे । कह सकते हैं कि उम्मीदों व सपनों से भरी एक हरी-भरी दुनिया के नष्ट-भ्रष्ट होने की उदासी, चिंता और आशंका उनके चित्रों में अभिव्यक्ति पा रही महसूस होती है - जिसके चलते उनके चित्र वास्तविक अर्थ व प्रासंगिकता पाते लगते हैं, और महत्त्वपूर्ण हो उठते हैं । ऐसा भी नहीं लगता कि नंदिता अपने चित्रों में सायास कुछ व्यक्त करने की कोशिश कर रही हों, क्योंकि तब उनके चित्रों में अभिव्यक्त होने वाली सहजता व स्वाभाविकता संभव न हो पाती । लगता यही है कि जैसे वह कैनवस पर रंगों के साथ लुकाछिपी का खेल-सा खेल रही हों । नंदिता बताती हैं कि उनका बचपन पेड़-पौधों-फूलों के बीच ही बीता है; उनके दादा और फिर उनके पिता को बगीचा लगाने/सजाने का खासा शौक था, जिसके चलते घर के बगीचे में, गमलों में और दीवारों पर विभिन्न किस्मों और रंगों के फूलों के पौधे और बेलें जैसे बिछी रहती थीं । ऐसे में, उन्होंने फूलों को खिलते हुए भी देखा है और मुरझाते व झरते हुए भी देखा है । नंदिता का कहना कि बचपन के वह दृश्य उन्हें जब तब स्मृति में लौटाते रहते हैं, और वही दृश्य अनायास ही कैनवस पर रूपांतरित हो जाते हैं ।
माना/कहा जाता है कि चित्रकला का परिवेश से बड़ा गहरा रिश्ता होता है । परिवेश वास्तव में एक व्यापक शब्द है । इसमें वह सब कुछ आ जाता है जो चित्रकार को चारों ओर से घेरता है : प्रकृति-जगत, समाज, मानव और मानवेतर, चर-अचर, संपूर्ण सृष्टि । चित्रकार का सरोकार इन सबसे होता है । उसका अनुभव-संसार इन सबको मिलाकर बनता है । लेकिन उसका परिवेश चित्र में सीधे, सरल रूप में नहीं बल्कि मिले-जुले और जटिल रूप में हमारे सामने आता है । पेंटिंग क्योंकि रचना है, अतः उसका परिवेश भी चित्रकार निर्मित करता है । वह अपने वास्तविक परिवेश को अपनी कल्पना, अपने अनुभव और अपने नजरिये के अनुसार बदल देता है । चित्रकार 'वास्तव' का हू-ब-हू चित्र नहीं पेश करता है, बल्कि 'वास्तव' को एक नए कोण से देखने की दृष्टि देता है । उसे देखने की अधिक सूक्ष्म और गहरी दृष्टि । वह वस्तुजगत को कला में बदलता है । परिवेश का असर ही चित्र बनता है, लेकिन वह असर कैनवस पर अवतरित तो चित्रकार के माध्यम से ही होता है, जिसमें चित्रकार की सृजनात्मक भूमिका ही काम करती है । नंदिता रिची के चित्रों को मैं जब भी देखता हूँ, मशहूर चित्रकार पॉल क्ली के एक प्रसिद्ध वाक्य को अक्सर याद करता हूँ, जिसमें वह कहते हैं कि 'एक कलाकार के लिए प्रकृति के साथ उसका संवाद होना सबसे अनिवार्य शर्त है । कलाकार एक मनुष्य के रूप में स्वयं प्रकृति है, प्राकृतिक अंतराल के भीतर वह स्वयं प्रकृति का एक हिस्सा है ।' नंदिता बचपन में अपने घर में देखे फूलों-पौधों के दृश्यों में बार-बार लौटने की जो बात कहती/बताती हैं, वह मुझे प्रकृति के साथ संवाद करते रहने की उनकी कोशिश के रूप में ही नजर आती है । 
नंदिता की पेंटिंग्स में बने हुए 'दृश्य' हमें अपने देखे हुए कुछेक दृश्यों की याद जरूर दिला सकते हैं, लेकिन उनके चित्र-दृश्य किसी प्राकृतिक दृश्य के हुबहु अंकन भी नहीं लगते हैं । वास्तव में उनका हर चित्र किसी नई भाव-स्थिति  का अंकन करता सा लगता है । यही कारण है कि प्रायः एक सी विषय-वस्तु होने के बावजूद कैनवस पर वह अपने आपको दोहराती नहीं हैं - और हर चित्र में नई 'निर्मिति' करती हैं । नंदिता उस संगीतकार के गायन की तरह पेंट करती लगती हैं, जो सिर्फ कुछ चुने हुए राग गाता है और हर बार उसी नोट्स की नई अज्ञात संभावना को उजागर कर देता है । नंदिता प्रकृति के कुछेक चुने हुए बुनियादी रूपाकारों पर एकाग्र रहती हैं । फूल, पत्ती, ताल, पेड़, झाड़ी आदि उनके चित्रों की दुनिया है । उनकी पेंटिंग्स के 'दृश्यों' की केंद्रीय विशेषता यह है कि वह किसी जगह विशेष का चित्रण नहीं लगते हैं । नंदिता की पेंटिंग्स में बने दृश्यों को देखें, तो वह कोई सोच-विचार कर बने हुए दृश्य नहीं लगते हैं; ऐसा लगता है जैसे वह रंग को एक सक्रिय तत्त्व में बदल रही हैं - और रंग या रंगों के स्ट्रोक, उनके परस्पर संबंध खुद ब खुद एक रूप या एक आकार ले रहे हैं, जो कई सारे अर्थों/अहसासों को जन्म देते लगते हैं । एकान्तिकता और मौन को एक साथ अभिव्यक्त करते नंदिता के चित्रों की 'कहानी' एक सी ही लगती है, जिसमें रंगों के एक-दूसरे में घुलमिल जाने से आकारों के स्पष्ट न होने के बावजूद अपने 'कहन/कथन' में वह साफ और दृढ़ दिखाई देती है । नंदिता की पिग्मेंट्स की 'ट्रीटमेंट' से इम्प्रेशनिस्ट्स का ध्यान भले ही आ जाता हो, पर उन्होंने उसे अपनी एक निजी तकनीक में रूपांतरित कर लिया है । रंग लगाने के लिए वह ब्रश और या चाकू का ऐसे इस्तेमाल करती हैं, जैसे वह उनकी उँगलियों का विस्तार हो । एक कलाकृति का जादू और मर्म और रहस्य उसकी नितांत निजी, विशिष्ट बुनावट में रहता है, जिसे नंदिता ने प्रभावी तरीके से साध लिया है ।  , 
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[नंदिता रिची की पेंटिंग्स 19 जनवरी से गुड़गाँव स्थित ऑर्ट'एस्ट कला दीर्घा में शुरू हो रही समूह प्रदर्शनी में देखी जा सकती हैं । उक्त समूह प्रदर्शनी में नंदिता के साथ-साथ अमित दत्त, असुरवेध, नवल किशोर, नीरज दत्त, शशि पॉल तथा सुनयना मल्होत्रा के काम भी प्रदर्शित होंगे ।]

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