राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी, अंतर्राष्ट्रीय कला मेला और इंडिया ऑर्ट फेयर जैसे बड़े आयोजन अपनी प्रस्तुति में निराश/हताश करते हैं और बेगाना-सा महसूस कराते हैं
पहले 59वीं राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी और फिर अंतर्राष्ट्रीय कला मेले और उसके बीच ही आयोजित हुए इंडिया ऑर्ट फेयर के आयोजन के रूप में दिल्ली में कला को लेकर पिछले दिनों काफी धूम रही - इस धूम के बावजूद युवा कलाकारों ने लेकिन अपने आपको ठगा हुआ ही महसूस किया । दरअसल कला का कोई भी आयोजन आधुनिक और समकालीन कला को विकसित व समृद्ध करने का और युवा कलाकारों को उस विकास व समृद्धता में सहभागी बनने का अवसर तो प्रदान करता ही है, साथ ही साथ युवा कलाकारों को आत्म-निरीक्षण करने का मौका भी उपलब्ध कराता है जिसमें वह इस बात का आकलन कर सकें कि अपनी रचना यात्रा में उन्होंने कितना विकास किया है और अपनी कला-चेतना को कितना विकसित व विस्तृत किया है । इस आधार पर देखें तो न तो राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी व अन्तर्राष्ट्रीय कला मेला और न ही इंडिया ऑर्ट फेयर युवा कलाकारों को ऐसा कोई मौका दे सका है । राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में जिस तरह का काम चयनित व पुरस्कृत हुआ है, उसकी कला-जगत में तीखी आलोचना हुई है और साफ तौर पर रेखांकित किया गया है कि 59वीं राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी किसी भी तरह से देश की समकालीन कला का प