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Showing posts from January, 2018

बेंगलुरु में पब्लिक ऑर्ट का सक्रिय व सचेत नजारा

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बेंगलुरु में यह सुन, जान और देख कर सचमुच मुझे बड़ा विस्मय हुआ कि बढ़ती भागमभाग के बीच यहाँ पब्लिक ग्राफिक ऑर्ट का चलन खासा बढ़ा है, जिसमें युवा कलाकारों की संलग्नता का दिलचस्प नजारा प्रायः देखने को मिल जाता है । आम लोगों से मिली प्रतिक्रिया ने तो कलाकारों को पब्लिक ग्राफिक ऑर्ट के लिए प्रेरित व उत्साहित किया ही है, अब तो कुछेक ऑर्ट गैलरीज और स्वयंसेवी संस्थाएँ भी उन्हें सपोर्ट करने लगी हैं । बेंगलुरु के दक्षिण-पूर्व सबर्ब होसुर-सरजापुर रोड लेआउट - जो एचएसआर लेआउट के रूप में जाना/पहचाना जाता है, और जिसे बेंगलुरु के प्रमुख आईटी हब इलेक्ट्रॉनिक सिटी के प्रवेश द्वार के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है - में पब्लिक ग्राफिक ऑर्ट के कुछेक काम सहज ही ध्यान खींचते हैं । इन्हें बादल नन्जुंदास्वामी ने बनाया है । बादल सामाजिक-राजनीतिक रूप से एक बहुत सचेत और अत्यंत सक्रिय चित्रकार और शिल्पकार हैं । बेंगलुरु की सड़कों के गड्ढों की तरफ प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए पिछले तीन-चार वर्षों में उन्होंने लगातार अपनी कला का बेहद रचनात्मक और जिदभरा काम किया है । अन्य कई कामों के साथ-साथ हसन में

गढ़ी में 'संडे ऑर्ट हाट' उर्फ ठेले पर कला

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ललित कला अकादमी के गढ़ी रीजनल सेंटर में पिछले कुछ रविवारों से 'संडे ऑर्ट हाट' देखने को मिल रहा है, जहाँ चित्रकार/कलाकार अपनी अपनी पेंटिंग्स और या स्कल्प्चर को पटरी बाजार की दुकानों की तरह सजाते हैं, और उनके बिकने का इंतजार करते रहते हैं । बीच बीच में ऊबते हुए एक दूसरे की 'दुकान' पर बैठ कर गप्पें करते हैं और शाम ढलते अपनी अपनी दुकान समेट कर घर लौट जाते हैं । यह नजारा देख कर मुझे गढ़ी के पूर्व निदेशक नरेंद्र दीक्षित की याद हो आई । नरेंद्र दीक्षित जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से रिटायर होने के बाद करीब तीन वर्ष गढ़ी के निदेशक रहे थे । प्रख्यात ब्रिटिश पेंटर और प्रिंटमेकर स्टेनले विलियम हेतर से 'ग्रावुरे' जैसी प्रिंटिंग तकनीक सीखने और पेरिस स्थित 'अटेलिएर 17' में साठ के दशक के अंत में तब के प्रमुख चित्रकारों के साथ काम कर चुके नरेंद्र दीक्षित ने अपने चित्रों की दिल्ली, पेरिस व कोपेनहेगेन में दस एकल प्रदर्शनियाँ की थीं, तथा देश-विदेश में आयोजित हुईं 22 समूह प्रदर्शनियों में उनके चित्र प्रदर्शित हुए हैं । बात अप्रैल 2000 में दिल्ली के

कोलकाता में अपनी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी करने जा रहे गणेश हलोई का कहना है कि 'पेंटिंग भी वास्तव में बोध की एक प्रक्रिया है'

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कोलकाता की 'आकार प्रकार' गैलरी में 15 जनवरी की शाम वरिष्ठ चित्रकार गणेश हलोई के हाल ही में बनाए चित्रों की 'पोएटिक्स ऑफ एब्सट्रेक्शन' शीर्षक प्रदर्शनी उद्घाटित हो रही है, जिसे जेसल ठक्कर क्यूरेट कर रही हैं । गणेश हलोई की पेंटिंग्स पिछले दिनों ही बर्लिन बिएनाले तथा एथेंस व कासेल में आयोजित डोक्युमेंटा 14 जैसे समकालीन कला के विख्यात और प्रतिष्ठित आयोजनों में प्रदर्शित हुईं हैं । गणेश हलोई ने अपने चित्रों में एब्सट्रेक्शन को एक नई ही ऊँचाई दी है । जेसल ठक्कर के साथ बातचीत में उन्होंने बहुत ही स्पष्टता के साथ अपने विचार व्यक्त किये हैं । अंग्रेजी में हुई उसी बातचीत का अशोक पाण्डे द्वारा किए गए अनुवाद से गणेश हलोई की कही बात का किंचित संपादित अंश यहाँ प्रस्तुत है :     'एब्सट्रेक्शन रंगों का अर्थहीन टुकड़ा भर नहीं होता ।    एब्सट्रेक्शन विचार, सघन अनुभूति और मजबूत कल्पनाशक्ति से  आता है । वास्तव में कल्पना ही अंतिम सत्य है ।  यह अकल्पनीय रूप से आश्चर्यजनक काम कर सकती है ।  मैं अपने आप को खुशकिस्मत मानता हूँ कि  मैं कला की सौगात लेकर इस धरती