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Showing posts from January, 2019

कोच्ची-मुज़िरिस बिएनाले में लॉन्च हो चुके जितिश कल्लट के मोनोग्राफ को इंडिया ऑर्ट फेयर में दोबारा लॉन्च करना कला और बाजार के पेचीदा रिश्ते में धोखाधड़ी को स्वीकार्यता मिलने का उदाहरण है क्या ?

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31 जनवरी से नई दिल्ली में शुरू हो रहे इंडिया ऑर्ट फेयर के आयोजक भारतीय समकालीन कलाकार जितिश कल्लट पर प्रकाशित हुए मोनोग्राफ के लॉन्च के कार्यक्रम को लेकर विवाद में फँस गए हैं ।  इंडिया ऑर्ट फेयर के कार्यक्रमों की लिस्ट में 2 फरवरी को नेचर मोर्ते गैलरी द्वारा प्रकाशित जितिश कल्लट के मोनोग्राफ को लॉन्च करने का कार्यक्रम शामिल है । इस मामले में विवाद का मुद्दा यह है कि उक्त मोनोग्राफ  तो लेकिन कोच्ची-मुज़िरिस बिएनाले में पहले ही लॉन्च हो चुका है । 12 दिसंबर को उद्घाटित हुए कोच्ची-मुज़िरिस बिएनाले के दूसरे ही दिन, यानि 13 दिसंबर को फोर्ट कोच्ची के कब्राल यार्ड के पवेलियन में उक्त मोनोग्राफ रिलीज हुआ और उसकी पहली प्रति कोच्ची के पूर्व मेयर के जे सोहन को सौंपी गई थी ।  सवाल यह पूछा जा रहा है कि करीब पचास दिन पहले ही लॉन्च हुए मोनोग्राफ को इंडिया ऑर्ट फेयर में दोबारा से क्यों लॉन्च किया जा रहा है ? इंडिया ऑर्ट फेयर के पास कार्यक्रमों की कमी है क्या, जो उसे दूसरे आयोजनों के कार्यक्रमों को इम्पोर्ट करना पड़ रहा है ?  इंडिया ऑर्ट फेयर की पहचान एक बड़े अंतर्राष्ट्रीय कला मेले की है; स्वाभाविक रूप

जयपुर के जवाहर कला केंद्र की डायरेक्टर जनरल पूजा सूद के कार्य-व्यवहार से नाराज कलाकारों ने उन्हें हटाए जाने के लिए राजस्थान की नई सरकार पर दबाव बनाया

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राजस्थान में सत्ता परिवर्तन होते ही जयपुर स्थित  जवाहर कला केंद्र की डायरेक्टर जनरल पूजा सूद को पद से हटाए जाने की माँग जोर पकड़ने लगी है ।  पूजा सूद को भाजपा की कठपुतली के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जवाहर कला केंद्र के संचालन बोर्ड में विश्वविख्यात शिल्पकार अनीश कपूर को शामिल करने के दो दिन बाद ही हटा दिए जाने के मामले में कलाकार बिरादरी में पूजा सूद के खिलाफ गहरी नाराजगी पैदा हुई थी । दरअसल अनीश कपूर की नियुक्ति के साथ ही भाजपा सरकार की जानकारी में आया कि अनीश कपूर ने ब्रिटिश अखबार 'द गॉर्जियन' में एक लेख लिख कर विचारों व अभिव्यक्ति की भिन्नता को लेकर मोदी सरकार के असहिष्णु रवैये की आलोचना की है । यह जानकारी मिलते ही अनीश कपूर की नियुक्ति को तत्काल रद्द कर दिया गया ।  इसके अलावा, जवाहर कला केंद्र में आयोजित हुए जयपुर ऑर्ट समिट में प्रख्यात कलाकार चिंतन उपाध्याय के गाय को लेकर बनाए और प्रदर्शित किए गए एक शिल्प को 'धार्मिक भावनाएँ भड़काने' वाला बताते हुए पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई में न सिर्फ उक्त शिल्प नष्ट कर दिया गया, बल्कि चिंतन उपाध्याय के साथ बदतमीजी भी की ग

नंदिता रिची की पेंटिंग्स उर्फ़ उम्मीदों व सपनों से भरी एक हरी-भरी दुनिया के नष्ट-भ्रष्ट होने की उदासी, चिंता और आशंका की अभिव्यक्ति

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नंदिता रिची के लैंडस्केप चित्र पहली नजर में आकर्षित करते हैं और इस तरह आकर्षित करते हैं कि अपने सामने रोक लेते हैं; लेकिन देर तक ध्यान से देखे जाने पर वह एक रहस्यमय, फंतासी लोक की तरह का अहसास करवाते हैं और एक खास तरह की आशंका (एंग्जाइटी) के तत्वों से बनते अंतर्विरोधी वातावरण के चलते वह उल्लेखनीय लगने लगते हैं । उनकी पेंटिंग्स में रंग प्रायः अंतर्विरोधी संगत करते हैं - एक तरफ तो वह बहुत चटख चमक लिए दिखेंगे, लेकिन साथ-साथ ही वह पनीले और हल्के पड़ते नजर आयेंगे; और इस तरह वह एक सुंदर व रहस्यमयी नजर आने वाले वातावरण में चिंता, उदासी व आशंका के सूक्ष्म संकेतों को और गहरा करते से लगेंगे । कह सकते हैं कि उम्मीदों व सपनों से भरी एक हरी-भरी दुनिया के नष्ट-भ्रष्ट होने की उदासी, चिंता और आशंका उनके चित्रों में अभिव्यक्ति पा रही महसूस होती है - जिसके चलते उनके चित्र वास्तविक अर्थ व प्रासंगिकता पाते लगते हैं, और महत्त्वपूर्ण हो उठते हैं । ऐसा भी नहीं लगता कि नंदिता अपने चित्रों में सायास कुछ व्यक्त करने की कोशिश कर रही हों, क्योंकि तब उनके चित्रों में अभिव्यक्त होने वाली सहजता व स्वाभाविकता संभ

गैलरीज तथा कला बाजार के संगठित तंत्र से बाहर रहने वाले कलाकार अपनी कला और अपनी प्रदर्शनी से जुड़े कामों को कलात्मक और प्रभावी ढंग से करने की बजाए संयोग, जुगाड़ और किस्मत के भरोसे ही क्यों रहते हैं ?

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चंडीगढ़ में युवा कलाकारों के एक ग्रुप  ने समूह प्रदर्शनी के अपने आयोजन को 'हाईप' देने के लिए आसान फार्मूला यह सोचा और अपनाया कि शहर के कुछेक वरिष्ठ कलाकारों को उन्होंने अपनी प्रदर्शनी में अपना अपना काम प्रदर्शित करने के लिए  'आमंत्रित' किया ।  ऐसा करते हुए उन्होंने उम्मीद की कि वरिष्ठ कलाकारों की उपस्थिति के कारण मीडिया और शहर के कला प्रेमियों का ध्यान उनके आयोजन की तरफ आकृष्ट होगा और उन्हें तथा उनके काम को पहचान मिलेगी । लेकिन कुल नतीजा उल्टा निकला; मीडिया और कला प्रेमियों का सारा ध्यान वरिष्ठ कलाकारों पर ही केंद्रित रहा - और प्रदर्शनी के आयोजक युवा कलाकार ठगे से रह गए । अब वह अपने उस फैसले को कोस रहे हैं, जिसके तहत उन्होंने वरिष्ठ कलाकारों को अपनी प्रदर्शनी में अपना काम प्रदर्शित करने का आमंत्रण दिया । सवाल लेकिन यह है कि वह यदि उक्त फैसला न करते तो उन्हें मीडिया व कला प्रेमियों के बीच वैसी ही चर्चा और पहचान मिलती, जैसी कि वह चाहते होंगे ? मेरा जबाव नहीं में है ।   मैंने देखा/पाया है कि अधिकतर कला प्रदर्शनियाँ यूँ ही संपन्न हो जाती हैं; उनकी शुरुआत तो उत्साह के साथ