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कविता सृजन ही नहीं एक कलाकृति भी है

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विजेंद्र यूँ तो एक लेखक और चित्रकार होने के साथ साथ मार्क्सवादी विचारक भी हैं - किंतु उन्हें पहचान, प्रसिद्धी और बुलंदी उनके कवि-कर्म से मिली है । लेखक के रूप में हालाँकि उनकी कुछेक पद्य रचनाएँ, डायरी और नाटक भी प्रकाशित हैं - पर उनकी पुस्तकों में कविता-संग्रहों की ही बहुतायत है । वह 1956 से कविताएँ लिख रहे हैं; और इस तरह अगले वर्ष वह अपने कविता-जीवन के साठ वर्ष पूरे करेंगे । उनकी कविताओं को पढ़ते हुए सहज ही आभास होता है कि उनके लिए कविता हृदय के भावों का स्वाभाविक उच्छलन है । उनकी कविताएँ सघन अनुभूति और गहराई से उत्पन्न हैं, जिनमें जीवन के तमाम अंतर्विरोधों और विद्रूपताओं के बीच मनुष्यता को बचाए रखने का आह्वान है । विविधता और बहुआयामिता की सामर्थ्य से परिचित कराता विजेंद्र का कविता-संसार उनके सरोकारों व दृष्टि-संपन्नता को भी अभिव्यक्त करता है । यहाँ प्रस्तुत उनका एक आलेख और उनकी दो कविताएँ उनके रचना-कर्म की एक झलक भर का अहसास कराती हैं : ।। कविता बिम्बों में संज्ञान का मूर्तन ।।    कविता जीवन, जगत और प्रकृति का पुनर्सृजन है । इसके पीछे मेरे क्रियाशील चित्त की प्रम