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Showing posts from December, 2018

सुबोध गुप्ता पर लगे यौन छेड़छाड़ के आरोपों पर विदेशी गैलरीज द्वारा दिखाए रवैये ने सुबोध गुप्ता के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है और कला बाजार में अपनी हैसियत को बचा पाना उनके लिए बड़ी चुनौती बना है

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मीटू हैशटैग अभियान के चलते यौन उत्पीड़न के आरोपों के घेरे में आने वाले हाई प्रोफाइल ऑर्टिस्ट सुबोध गुप्ता के बाजार को बचाने की कोशिशें तेज हो गई हैं, और इस मामले में पाब्लो पिकासो से जुड़े किस्सों का हवाला देकर मामले को 'हल्का' करने का प्रयास किया जा रहा है ।  एक वरिष्ठ महिला कला समीक्षक व क्यूरेटर ने बेहद 'चालाकी' से लिखे लेख में विस्तार से बताया है कि पिकासो अपनी प्रेमिकाओं के साथ बहुत ही खराब व्यवहार किया करते थे और महिलाओं के प्रति बहुत ही नकारात्मक विचार रखते थे, लेकिन फिर भी उनकी कृतियों के दामों पर कभी भी संकट नहीं आया और वह हमेशा ही लगातार बढ़ते गए हैं । पिकासो के व्यवहार और उनकी बातों के जरिये अप्रत्यक्ष रूप से सुबोध गुप्ता का बचाव करने की कोशिशों के बावजूद वह कला बाजार में सुबोध गुप्ता की हैसियत के बने रहने को लेकर हालाँकि आश्वस्त नहीं हैं, और उन्होंने मामले को 'समय' पर छोड़ दिया है ।   दरअसल वह भी समझ रही हैं कि पिकासो और सुबोध गुप्ता का मामला एक जैसा नहीं है : पिकासो की बदतमीजियों के उदाहरण उन महिलाओं के साथ के हैं, जो उनके साथ संबंधों में रहीं; जबकि

आईफैक्स की 91वीं वार्षिक कला प्रदर्शनी में चयनित होने व पुरस्कृत होने में बड़े कला केंद्रों के मुकाबले छोटे शहरों के कलाकारों के काम को मिली तरजीह बदलते कला वातावरण का ही नतीजा है

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आईफैक्स (ऑल इंडिया फाईन ऑर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी) की 91 वीं वार्षिक कला प्रदर्शनी समकालीन कला परिदृश्य में देश के दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बेंगलुरु, वडोदरा जैसे बड़े कला केंद्रों के मुकाबले छोटे और कला के क्षेत्र में अनजान से शहरों के कलाकारों की बढ़ती सक्रियता तथा उपलब्धियों का एक दिलचस्प नजारा प्रस्तुत करती है ।  छोटे व कला के क्षेत्र में अनजान से शहरों के कलाकारों ने न सिर्फ वार्षिक कला प्रदर्शनी के लिए चयनित होने के मामले में बड़े कला केंद्रों के कलाकारों को कड़ी टक्कर दी है, बल्कि पुरस्कृत होने के मामले में भी बेहतर 'प्रदर्शन' किया है । आमतौर पर माना/समझा जाता है - और ठीक ही माना/समझा जाता है - कि बड़े कला केंद्रों में चूँकि सुविधाओं और सक्रियताओं का जोर रहता है, इसलिए वहाँ के कलाकार ज्यादा चेतनासंपन्न होते हैं और उनकी अभिव्यक्ति कम से कम सधी हुई तो होती ही है; जबकि सुविधाओं व सक्रियताओं के अभाव में छोटे कला केंद्रों में उदासीन व निराशाजनक स्थिति होने के कारण वहाँ के कलाकारों के लिए अपनी पहचान बना पाना और मुख्य धारा में शामिल हो पाना काफी मुश्किल होता है ।  यही क

'सेरेण्डिपिटी ऑर्ट फेस्टिबल 2018' का क्यूरेटर बनने और फिर यौन उत्पीड़न के आरोपों के घेरे में आने के कारण हाई प्रोफाइल ऑर्टिस्ट सुबोध गुप्ता खासी फजीहत के शिकार हो रहे हैं

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कल से गोवा में शुरू हो रहे 'सेरेण्डिपिटी ऑर्ट फेस्टिबल 2018' के क्यूरेशन की जिम्मेदारी संभालने के चलते हाई प्रोफाइल ऑर्टिस्ट सुबोध गुप्ता जैसे खासी मुसीबत में फँस गए हैं । पहले तो उन पर क्यूरेटर की जिम्मेदारी संभालने के कारण दोहरे मापदंड लगाने का आरोप लगा, और अब वह मीटू हैशटैग के तहत यौन छेड़छाड़ के आरोपों के घेरे में आ गए हैं । उल्लेखनीय है कि सुबोध गुप्ता कलाकारों के क्यूरेटर की भूमिका निभाने का विरोध करते रहे हैं । दरअसल बोस कृष्णामचारी, जितिश कल्लट, सुदर्शन शेट्टी, अनिता दुबे जैसे प्रमुख कलाकारों के क्यूरेटर की भी जिम्मेदारी निभाने के कारण कला जगत में बहस चली कि एक कलाकार को क्या क्यूरेटर की भूमिका निभाना चाहिए ? अधिकतर कलाकारों का मानना/कहना रहा कि किसी भी कला आयोजन के क्यूरेशन के लिए जिस तरह की विविधतापूर्ण खूबियों की जरूरत होती है, वह कलाकारों में प्रायः नहीं होती है; और एक कलाकार के लिए क्यूरेशन जैसे काम के साथ न्याय करने को लेकर संदेह रहता है - इसलिए कलाकारों को क्यूरेशन के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए । सुबोध गुप्ता भी कलाकारों के क्यूरेशन से दूर रहने के पक्ष में वि