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Showing posts from April, 2015

लोकमित्र गौतम की कविताएँ

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राजनीतिक व सामाजिक विषयों पर प्रखर टिप्पणियों के लिए पहचाने जाने वाले लोकमित्र गौतम के अनुभवों की विविधता और विचार व समझ की गहराई का परिचय कभी-कभार पत्रिकाओं में प्रकाशित होने वाली उनकी कविताओं के जरिये भी मिलता रहा है । इसीलिए उनके पहले कविता संग्रह 'मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊँगा …' के प्रकाशन की सूचना ने उत्साहित किया । नितांत सरल संवेदना का अहसास करातीं लोकमित्र गौतम की कविताओं में अनुभव का सृजनात्मक प्रतिफलन विचारोत्तेजक तो है ही, साथ ही आस्वाद के स्तर पर प्रसरणशील भी है । इस संग्रह में प्रकाशित उनकी कविताएँ कुछ लंबी हैं और इसी कारण से आख्यानपरक हैं, जिसके जरिये वह चित्र खड़ा करते हैं और अपनी बात कहते हैं । कथात्मक बुनावट का आभास सा कराती उनकी कविताओं में कहीं कहीं हम अपने आप को विवरणों के जंजाल से घिरा हुआ सा पाते तो हैं, किंतु जैसे जैसे कविता आगे बढ़ती है हम पाते हैं कि जिसे हम विवरणों का जंजाल समझ रहे थे वह दरअसल सामाजिक तत्वों और उनसे प्रभावित मनोदशाओं का रचनात्मक संश्लेष है । लोकमित्र अपनी अभिव्यक्ति की परिधि में मौजूदा समय की जटिलता और संश्लिष्टता

गुलाम मोहम्मद शेख की दो कविताएँ

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सुरेंद्रनगर, गुजरात में 1937 में जन्में गुलाम मोहम्मद शेख देश-दुनिया में मूलरूप से एक चित्रकार के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । चित्रकार के रूप में उनकी जो ख्याति है और उन्होंने जो काम किया है, उसके कारण ही उन्हें अन्य कई पुरुस्कारों व सम्मानों के साथ साथ पद्मश्री और पद्मभूषण की उपाधियाँ भी मिली है । 1983 में पद्मश्री और 2014 में पद्मभूषण की उपाधि पाने वाले गुलाम मोहम्मद शेख देश-दुनिया में भले ही एक चित्रकार के रूप में जाने जाते हों, लेकिन गुजराती साहित्य में एक लेखक और एक कवि के रूप में भी उनकी खासी प्रतिष्ठा है । चित्र-रचना के साथ-साथ कविता-लेखन में समान अधिकार रखने वाले गुलाम मोहम्मद शेख की यहाँ प्रस्तुत मूल गुजराती में लिखीं कविताओं का हिंदी अनुवाद ज्योत्स्ना मिलन ने किया है । कविताओं के साथ प्रकाशित चित्र गुलाम मोहम्मद शेख की पेंटिंग्स के हैं | ।। दिल्ली ।। टूटे टिक्कड़ जैसे किले पर कच्ची मूली के स्वाद की सी धूप तुगलकाबाद के खंडहरों में घास और पत्थरों का संवनन परछाइयों में कमान, कमान में परछाइयाँ; खिड़की मस्जिद आँखों को बेधकर सुई की मान