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विश्वनाथ प्रसाद तिवारी का कहना है कि 'कविता नितांत वैयक्तिक या कवि की निजी भावनाओं का प्रवाह नहीं होती'

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'कविता आत्माभिव्यक्ति होती है' - अर्थात कवि अपनी कविता में स्वयं को अभिव्यक्त करता है । यह बात सही है, पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि कवि नितांत निजी सुख-दुःख को कविता के रूप में अभिव्यक्त करता है । 'अभिव्यक्ति' एक व्यापक शब्द है । इसका अर्थ उस इच्छा-शक्ति की अभिव्यक्ति है, जो मनुष्य की बुनियादी विशेषता है । यह इच्छा-शक्ति न हो, तो कवि-कलाकार काव्य-कला को जन्म नहीं दे सकता । कवि के समक्ष जो प्रकृति-प्रदत्त सृष्टि और उसकी दी हुई व्यवस्था होती है, उससे कवि की इच्छा-शक्ति का टकराव होता है और वह अपनी अभिव्यक्ति के तरीके ढूँढ़ती है । यही काव्य-रचना और अन्य कलाओं के रूप में प्रकट होता है । मनुष्य अपने को अभिव्यक्त करना चाहता है । लेकिन यह इच्छा उसमें क्यों है, इसका ठीक-ठीक उत्तर दे पाना बहुत कठिन है । यह आत्म-प्रकाशन की इच्छा भी है, एक से अनेक होने की भी तथा एक को दूसरे में मिला देने की भी । इसके मूल में शायद कहीं बहुत गहरा और पुराना सत्य यह भी है कि मनुष्य एक से ही अनेक हुआ है । शायद इसीलिये वह एक होना चाहता है और उसकी अनेकता में भी एकता दिखाई पड़ती है । अप