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'वैचारिकता की सक्रियता राग तेलंग की कविताओं को उल्लेखनीय बनाती है'

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'शब्द गुम हो जाने के खतरे', 'मिट्टी में नमी की तरह', 'बाज़ार से बेदख़ल', 'कहीं किसी जगह', 'कई चेहरों की एक आवाज', 'अंतर्यात्रा' के बाद 'कविता ही आदमी को बचायेगी' राग तेलंग का सातवाँ कविता संग्रह है जो अभी हाल ही में भोपाल के 'पहले पहल प्रकाशन' द्धारा प्रकाशित हुआ है । समकालीन भारतीय कला में अपनी विशेष पहचान रखने वाले चित्रकार देवीलाल पाटीदार की पेंटिंग को इस संग्रह के आवरण चित्र के रूप में लिया गया है । कुमार अंबुज को समर्पित इस संग्रह के आवरण के दूसरे छोर पर राग तेलंग की कविताओं को लेकर मुकेश मिश्र की संक्षिप्त टिप्पणी प्रकशित की गई है । यहाँ उक्त टिप्पणी के साथ इसी संग्रह की चार कविताओं को प्रस्तुत किया जा रहा है :   "कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करते हुए मैं राग तेलंग की सभी कविताओं को एक बार फिर से पढ़ गया, तो मैंने पाया कि व्यापक अर्थ में उनकी सभी कविताएँ राजनीतिक ही हैं । हालाँकि उनकी किसी भी कविता में कोई राजनीतिक संदर्भ साफ तौर पर नज़र नहीं आता है । राग तेलंग की कविताओं को मैं इस क