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Showing posts from 2013

'वैचारिकता की सक्रियता राग तेलंग की कविताओं को उल्लेखनीय बनाती है'

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'शब्द गुम हो जाने के खतरे', 'मिट्टी में नमी की तरह', 'बाज़ार से बेदख़ल', 'कहीं किसी जगह', 'कई चेहरों की एक आवाज', 'अंतर्यात्रा' के बाद 'कविता ही आदमी को बचायेगी' राग तेलंग का सातवाँ कविता संग्रह है जो अभी हाल ही में भोपाल के 'पहले पहल प्रकाशन' द्धारा प्रकाशित हुआ है । समकालीन भारतीय कला में अपनी विशेष पहचान रखने वाले चित्रकार देवीलाल पाटीदार की पेंटिंग को इस संग्रह के आवरण चित्र के रूप में लिया गया है । कुमार अंबुज को समर्पित इस संग्रह के आवरण के दूसरे छोर पर राग तेलंग की कविताओं को लेकर मुकेश मिश्र की संक्षिप्त टिप्पणी प्रकशित की गई है । यहाँ उक्त टिप्पणी के साथ इसी संग्रह की चार कविताओं को प्रस्तुत किया जा रहा है :   "कविता और राजनीति के रिश्ते पर विचार करते हुए मैं राग तेलंग की सभी कविताओं को एक बार फिर से पढ़ गया, तो मैंने पाया कि व्यापक अर्थ में उनकी सभी कविताएँ राजनीतिक ही हैं । हालाँकि उनकी किसी भी कविता में कोई राजनीतिक संदर्भ साफ तौर पर नज़र नहीं आता है । राग तेलंग की कविताओं को मैं इस क

केशव मलिक अवार्ड को प्रायोजित करके सुरेखा सदाना ने दिखाया/बताया है कि कलाकारों की कद्र करना जरूरी है

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ऑल इंडिया फाइन ऑर्ट्स एण्ड क्रॉफ्ट्स सोसायटी प्रख्यात कला समीक्षक केशव मलिक के नाम पर एक अवार्ड स्थापित करने जा रही है । सोसायटी के कार्यकारी अध्यक्ष परमजीत सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया है कि इस संबंध में आवश्यक औपचारिकताएँ पूरी की जा रही हैं और इस बारे में जल्दी ही आधिकारिक घोषणा कर दी जायेगी । कला क्षेत्र में केशव मलिक के नाम पर यह पहला अवार्ड होगा । केशव मलिक के नाम पर स्थापित होने वाले इस अवार्ड को समकालीन भारतीय कला क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान बना रहीं युवा चित्रकार सुरेखा सदाना ने प्रायोजित किया है । केशव मलिक की कला संबंधी विद्धता और प्रतिभा, कला क्षेत्र में उनकी सक्रियता और कलाकारों के प्रति उनकी सहृदयता को देख कर सुरेखा सदाना इतना प्रभावित हुईं कि उनके लिए कुछ करने को उत्सुक हुईं । इसी उत्सुकता में केशव मलिक के नाम पर अवार्ड स्थापित करने का आईडिया उन्हें सूझा । अन्य कलाकारों की कला प्रदर्शनियों के उद्घाटन के मौकों पर केशव मलिक को देखने-सुनने-जानने का अवसर यूँ तो सुरेखा सदाना को पिछले कई वर्षों से मिला, लेकिन नजदीक से जानने का मौका उन्हें वर्ष 2008 में

जगदीश स्वामीनाथन 19 वर्षों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारे सौभाग्य से उनकी पेंटिंग्स और उनकी कविताएँ हमारे लिए उपलब्ध हैं

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19 वर्ष पहले, वर्ष 1994 के आज के दिन तक आधुनिक भारतीय चित्रकला को उसके वातावरण से जोड़ने के महत्पूर्ण काम को अंजाम देने वाले जगदीश स्वामीनाथन (जून 21,1928 - अप्रैल 25,1994) हमारे बीच मौजूद थे | इस तथ्य को याद करना इसलिए भी रोमांचित करता है क्योंकि वह उन थोड़े से कलाकर्मियों में से हैं जो बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मनुष्य की अंतरात्मा और कला-माध्यम के प्रश्नों को अटूट देखने में समर्थ हैं और जिनका कुछ भी सोचा-कहा-किया हुआ हमारे लिए आज भी गहरा अर्थ रखता है | समकालीन कला संसार में एक विचारोत्तेजक 'घटना' के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले जगदीश स्वामीनाथन 19 वर्षों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारे सौभाग्य से उनकी पेंटिंग्स और उनकी कविताएँ हमारे लिए उपलब्ध हैं, जिनमें उनकी अनुपस्थिति में भी उनकी उपस्थिति को हम महसूस कर सकते हैं | कृष्ण बलदेव वैद के शब्द उनकी उपस्थिति को जैसे सजीव बनाते हैं : 'स्वामी एक ऐसा आधुनिकतावादी था जिसने आदिवासी कला को भोपाल स्थित भारत भवन के आधुनिक क

पुष्पिता अवस्थी की प्रेम कविताएँ

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कानपुर में जन्मी, बनारस में पढ़ने और पढ़ाने वाली और नीदरलैंड में 'हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन' के निदेशक के रूप में हिंदी के पठन-पाठन की जिम्मेदारी निभा रहीं बहुमुखी प्रतिभा की धनी पुष्पिता अवस्थी का 'शैल प्रतिमाओं से' शीर्षक एक अनोखा कविता संग्रह है, जिसमें उनकी हिंदी में लिखी कविताओं के साथ अंग्रेजी और डच में हुए अनुवाद भी साथ-साथ प्रकाशित हुए हैं । इस संग्रह ने पुष्पिता जी की कविता की पहचान को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया है । पुष्पिता जी की कविता का मुख्य स्वर प्रेम है । मौजूदा समय के घमासान में जहाँ सौन्दर्य-बोध के स्रोत तेजी से सूखते जा रहे हैं; जहाँ प्रेम को एकदम निजी अनुभूति मानकर व्यापक दृश्य से अलग किया जा रहा है या उसे निर्वासित करने की चेष्टा की जा रही है वहाँ प्रेम के लिए जगह तलाश कर उसे बचाए रखने का एक जरूरी हस्तक्षेप पुष्पिता जी की कविता ने किया है । पुष्पिता जी का रचना-संसार, जितना इस संग्र