ए रामचंद्रन की कलाकृतियों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी के नाम पर वढेरा ऑर्ट गैलरी के पदाधिकारियों के किए-धरे को लेकर बेंगलुरू के कलाकारों व कला प्रेमियों के बीच गहरी नाराजगी है
बेंगलुरू की नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट में पाँच
अक्टूबर की शाम को ए रामचंद्रन की पुनरावलोकन प्रदर्शनी का ही उद्घाटन नहीं
हुआ, बल्कि एक गंभीर विवाद का भी जन्म हुआ - जिस पर हालाँकि मिट्टी डालने
के प्रयास भी शुरू हो गए हैं । विवाद का विषय यह है कि बड़ी निजी ऑर्ट
गैलरियाँ किस चतुराई से सरकारी संसाधनों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल करते
हुए कलाकारों व कला प्रेमियों की उपेक्षा करते हुए अपने धंधे को बढ़ाने का
उपक्रम करती हैं, और सरकारी संस्थाओं के पदाधिकारी उनके हाथों की कठपुतली
बन कर रह जाते हैं । इस विवाद की शुरुआत का कारण यह आरोप बना कि पाँच
अक्टूबर को हुए उद्घाटन समारोह तथा छह अक्टूबर को आयोजित हुए संवाद
कार्यक्रम के निमंत्रण बेंगुलुरू के अधिकतर कला-प्रेमियों तथा कलाकारों को
मिले ही नहीं, और इन दोनों आयोजनों में उन्हीं लोगों की भागीदारी हो पाई जो
वढेरा ऑर्ट गैलरी के नजदीक या संपर्क में हैं - और जिनमें अधिकतर खरीदार
किस्म के लोग थे । कहने को तो इस पुनरावलोकन प्रदर्शनी का आयोजन नेशनल
गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के बेंगलुरू केंद्र ने वढेरा ऑर्ट गैलरी के सहयोग से
किया है, किंतु आयोजन की पूरी बागडोर वढेरा ऑर्ट गैलरी के लोगों के पास
दिखी - और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के पदाधिकारी तो बस उनकी ड्यूटी
बजाते हुए ही नज़र आए । इसका नुकसान यह हुआ है कि बेंगलुरू के अधिकतर
कलाकार पुनरावलोकन प्रदर्शनी के दो महत्त्वपूर्ण आयोजनों में भागीदारी से
वंचित रह गए और यह दोनों आयोजन उन लोगों का जमावड़ा बन कर रह गए जो वढेरा
ऑर्ट गैलरी के लिए किसी भी रूप में उपयोगी और फायदेमंद साबित हो सकते हैं ।
इस सारे नजारे में ही आरोप लगा कि भारत सरकार के संस्कृति
मंत्रालय के तहत आने वाले संस्थान - नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के नाम और
इंफ्रास्ट्रक्चर का वढेरा ऑर्ट गैलरी ने कैसी चतुराई से इस्तेमाल किया है ।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले, करीब 13 वर्ष पहले, वर्ष 2003 में दिल्ली
स्थित नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट ने वढेरा ऑर्ट गैलरी के ही सहयोग से
रामचंद्रन के कामों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी का आयोजन किया था - लेकिन
उस आयोजन में वढेरा ऑर्ट गैलरी के कर्ता-धर्ताओं को मनमानी करने का मौका
नहीं मिला था । यही कारण रहा कि वढेरा ऑर्ट गैलरी को अगले ही वर्ष अपने
स्तर पर अकेले ही रामचंद्रन के कामों की पुनरावलोकन प्रदर्शनी करनी पड़ी थी ।
उल्लेखनीय है कि इससे बहुत पहले, कुमार गैलरी रामचंद्रन के कामों की दो
पुनरावलोकन प्रदर्शनियाँ कर चुकी थी : 1978 में दिल्ली की ऑर्ट हैरिटेज कला
दीर्घा में और 1983 में मुंबई की जहाँगीर ऑर्ट गैलरी में । यहाँ यह याद
करना प्रासंगिक होगा कि रामचंद्रन ने अपनी चित्र प्रदर्शनियों की शुरुआत
कुमार गैलरी के साथ ही की थी, और उनके चित्रों की पहली एकल प्रदर्शनी
वर्ष 1966 में कुमार गैलरी ने ही लगाई थी । बाद के वर्षों में लेकिन
रामचंद्रन वढेरा ऑर्ट गैलरी के हो गए । रामचंद्रन की कला कृतियों का सबसे
बड़ा खजाना आज वढेरा ऑर्ट गैलरी के पास ही है ।
वढेरा
ऑर्ट गैलरी ने रामचंद्रन के काम को अच्छे से और बहुत तरीके से संग्रहीत व
संयोजित भी किया है । रामचंद्रन के जीवन और उनकी कला यात्रा पर वढेरा ऑर्ट
गैलरी ने कला इतिहासकार आर सिव कुमार की एक महत्त्वपूर्ण किताब भी प्रकाशित
की है । लेकिन वढेरा ऑर्ट गैलरी की सारी गतिविधियों के पीछे व्यावसायिक
नजरिया ही हावी रहा । यह ठीक है कि वढेरा ऑर्ट गैलरी एक व्यावसायिक
संस्थान है, और उसके लिए व्यवसाय ही महत्त्व रखता है - लेकिन कला जगत में
व्यवसाय करने वालों से कला जगत के प्रति सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की भी
अपेक्षा की ही जाती है; और इसी अपेक्षा के चलते कला प्रेमियों व प्रेक्षकों
को यह देख/जान कर बुरा लगता रहा है, कि वढेरा ऑर्ट गैलरी ने रामचंद्रन की
कला को सिर्फ खरीदारों के बीच ही उपलब्ध करने/होने का काम किया है ।
बेंगलुरू में इसका ही बड़ा फूहड़ रूप देखने को मिला है । यहाँ इस तथ्य को
रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट का बेंगलुरू
केंद्र शुरू से ही निष्क्रियता के आरोपों के घेरे में रहा है । फंड की कमी
की शिकायत तो आम रही ही है; यहाँ स्थाई निदेशक और क्यूरेटर भी नहीं रह पाया
। इस कारण यहाँ अराजकता का माहौल रहा है । वढेरा ऑर्ट गैलरी ने इसी
अराजकता का फायदा उठाया । बेंगलुरू में रामचंद्रन की कलाकृतियों की
पुनरावलोकन प्रदर्शनी को दक्षिण भारत में रामचंद्रन के पहले बड़े शो के रूप
में देखा/पहचाना जा रहा है । इस नाते से उम्मीद की जा रही थी कि इस
प्रदर्शनी के साथ कम से कम बेंगलुरू के कलाकारों, कला प्रेमियों व कला
प्रेक्षकों को सम्मानजनक तरीके से संबद्ध करने का काम किया जाएगा ।
नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के लोगों के पास ऐसा करने के 'साधन' नहीं थे,
और वढेरा ऑर्ट गैलरी के पदाधिकारियों ने ऐसा कुछ करने की जरूरत ही नहीं
समझी । वढेरा ऑर्ट गैलरी के इस व्यवहार को बेंगलुरू के कलाकारों व कला
प्रेमियों के साथ एक अन्याय के रूप में देखा जा रहा है । आरोप है कि
वढेरा ऑर्ट गैलरी ने बेंगलुरू में नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के नाम का और
उसकी जगह का तो इस्तेमाल कर लिया, लेकिन नेशनल गैलरी जिन लोगों के लिए बनी
है - उन्हें अलग थलग कर दिया ।
विडंबना की बात यह है
कि वढेरा ऑर्ट गैलरी ने यह सब रामचंद्रन के नाम पर किया । उल्लेखनीय है कि
कला जगत में ए रामचंद्रन के नाम से विख्यात अचुतन रामचंद्रन नायर आज देश के
चुने हुए महत्त्वपूर्ण चित्रकारों में से एक हैं, और उनकी कला में भारतीय
स्पंदन तथा उसकी सौंदर्यदृष्टि का गहरा अवलोकन है । तकनीकी स्तर पर
बेमिसाल उनकी कृतियों में कला के बुनियादी मूल्य अपनी पूरी चमक के साथ
प्रकट हुए हैं । ययाति, उर्वशी, गांधारी, कुंती आदि जैसे मिथकीय आख्यान के
लोकप्रिय चरित्रों का रामचंद्रन ने जिस स्वप्नशीलता तथा उत्कृष्ट व उदात्त
रंग योजना के जरिए पुनराविष्कार किया है, वह हमें अभिभूत तो करती ही है -
साथ ही हमें हमारे अतीत से भी परिचित कराती है । वर्ष 1986 में रचित
'ययाति' वास्तव में 12 पैनलों वाली एक 60 फुट लंबी पेंटिंग है, जिसने एक
चित्रकार के रूप में रामचंद्रन की पहचान को एक लंबी और ऊँची छलाँग दी ।
केरल के एक अपरिचित से कस्बे अत्तिंगल में 1935 में जन्में रामचंद्रन ने
बचपन से किशोरावस्था तक शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली; हालाँकि पढ़ाई
उन्होंने साहित्य में की । केरल विश्व विद्यालय से मलयालम साहित्य में
एमए करने के बाद केरल विश्व विद्यालय की एक स्कॉलरशिप पर उनका नामांकन
शांतिनिकेतन के कला भवन के लिए हुआ, जहाँ उन्होंने नन्दलाल बसु व रामकिंकर
बैज जैसे प्रख्यात कला-आचार्यों की देख-रेख में फाइन ऑर्ट की पढ़ाई की ।
संगीत व साहित्य की पृष्ठभूमि ने शांतिनिकेतन में होने वाली कला की उनकी
पढ़ाई को जो व्यापकता व समग्रता दी, वह फिर उनकी कलाकृतियों में बार-बार
प्रस्फुटित होती रही । समकालीन भारतीय कला में एक प्रकाश स्तम्भ की
तरह देखे जाने वाले रामचंद्रन के नाम पर वढेरा ऑर्ट गैलरी के पदाधिकारियों
ने जो किया है, उसे लेकर बेंगलुरू के कलाकारों व कला प्रेमियों के बीच गहरी
नाराजगी है ।
ए.रामचंद्रन के बारे में पढ़कर ज्ञानवर्धन हुआ।
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