इटली के पर्लेमो से लेकर दिल्ली व मुंबई में हाल के दिनों में कला को लेकर जो हुआ है, वह अपनी संरचना और व्यवस्था में कोई बहुत नया या अनोखा न होते हुए भी उम्मीद जगाने तथा रास्ता दिखाने वाला जरूर है

पिछले पाँच-छह दशकों में कला की दुनिया में परंपरागत माध्यमों से इतर नए माध्यमों का जो विस्तार हुआ है, और उसमें तकनीकी विकास ने जो योगदान दिया है - उसने कला के विश्लेषण व अवलोकन के प्रतिमानों को तो अस्थिर किया ही है, कला के देखने/समझने के पूरे फ्रेम को भी बदल दिया है । चाक्षुक कला में नित नए होते प्रयोगों ने दर्शकों और कला-प्रेक्षकों को लगातार चमत्कृत व अचम्भित किया है, जिसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है और वह यह कि कला को जरूरत के रूप में देखने की बजाये प्रदर्शन और फैशन की चीज मान लिया गया; और कला को सनसनी फैलाने का जरिया मान लेने की प्रवृत्ति बढ़ी । इस वजह से कला की समाज से दूरी बनती व बढ़ती गई । इस कारण से उन कलाकारों के सामने दिक्कत आई जो दर्शकों व कला-प्रेक्षकों से संवाद बनाना/करना चाहते हैं; और सच यह भी है कि अलग अलग कारणों से हर कलाकार ही संवाद बनाना चाहता है । चूँकि हर समस्या, अपने हल के प्रयासों की प्रेरणास्रोत भी होती है - इसलिए समस्याएँ पैदा हुईं, तो उनके हल के प्रयास भी तेज हुए और इन प्रयासों को इंस्टालेशन व पब्लिक ऑर्ट जैसे कला-रूपों ने भी बढ़ावा दिया । हाल ही के दिनों में देश-विदेश में कला को सही अर्थों में जनोन्मुखी तथा कला माहौल को जीवंत बनाने के जो सुनियोजित व पेशेवर प्रयास देखने को मिले हैं, वह अपनी संरचना और व्यवस्था में हालाँकि कोई बहुत नए या अनोखे नहीं हैं, लेकिन फिर भी उम्मीद जगाने तथा रास्ता दिखाने वाले जरूर हैं ।  
इटली के पलेर्मो में आयोजित हुए मनिफेस्टा बिनाले के 12वें संस्करण के उद्घाटन अवसर पर शहर की सड़कों पर पब्लिक ऑर्ट के प्रदर्शन किए गए, जिनमें विभिन्न देशों के कलाकारों ने भाग लिया । पब्लिक ऑर्ट के क्षेत्र में अपने अभिनव प्रयोगों व प्रदर्शनों के लिए पहचाने जाने वाले नाइजीरियन मल्टीमीडिया ऑर्टिस्ट जेलिली अतिकु के नेतृत्व में व्यस्त बाजारों के बीच निकले जुलूस ने स्थानीय लोगों के साथ-साथ बिनाले में भाग लेने आये विभिन्न देशों के कलाकारों को भी प्रभावित किया । जेलिली अतिकु ने अपनी प्रस्तुतियों में वास्तविकता को विश्वास और सत्य की कसौटी पर कसते हुए जो प्रयोग किए हैं, उसमें कला की पारम्परिक और शास्त्रीय अवधारणा को बदलने की कोशिश तो है ही, साथ ही सामाजिक व राजनीतिक विमर्श को प्रेरित करने तथा उकसाने का भी उद्देश्य है । उनकी सहभागिता ने मनिफेस्टा बिनाले को एक अलग पहचान दी है । उल्लेखनीय है कि दो वर्ष में एक बार आयोजित होने वाला मनिफेस्टा बिनाले हर बार अपनी जगह बदल लेता है और एक नई जगह पर आयोजित होता है; इसीलिए इसे यायावर या घुमंतु (नोमैडिक) बिनाले के रूप में भी पुकारा जाता है । यूरोपियन नोमैडिक बिनाले, मनिफेस्टा का पिछला आयोजन स्विट्जरलैंड के ज्यूरिक में हुआ था और अभी हाल ही में संपन्न हुआ 12वाँ आयोजन पलेर्मो में हुआ है । अरब व नॉर्मन ऑर्किटेक्चर के लिए प्रख्यात पलेर्मो को इटली की साँस्कृतिक राजधानी के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है । पलेर्मो में हुए आयोजन ने उद्घाटन अवसर पर हुए पब्लिक ऑर्ट के प्रदर्शनों के कारण कला जगत का ध्यान खास तौर से खींचा है ।
इसी बीच दिल्ली में धूमीमल कला दीर्घा में जगदीश स्वामीनाथन के जन्मदिन के अवसर पर जो आयोजन हुआ, वह अपनी 'व्यवस्था' में तो साधारण ही था, लेकिन स्वामीनाथन के साथी रहे वरिष्ठ चित्रकार कृष्ण खन्ना की मौजूदगी में हुए कुछेक प्रमुख कवियों के कविता पाठ के साथ-साथ प्रयाग शुक्ल द्वारा हाल ही में पूरी की गई स्वामीनाथन की बायोग्राफी के कुछेक अंशों के प्रयाग शुक्ल द्वारा ही किए पाठ ने कार्यक्रम को एक भावनात्मक किस्म की 'भव्यता' जरूर दी । इस तरह के कार्यक्रम यूँ तो होते रहते हैं, लेकिन दिल्ली के कनॉट प्लेस क्षेत्र में धूमीमल कला दीर्घा के 'भूगोल' ने जिस तरह भीतर और बाहर के स्पेस को 'जोड़ने' का काम किया, और जिसके चलते बाहर के लोगों में भी यह देखने/जानने की उत्सुकता हुई कि भीतर हो क्या रहा है - उसके कारण इस आयोजन की 'डिजाइन' महत्त्वपूर्ण हो गई । मुंबई में पीरामल म्यूजियम ऑफ ऑर्ट में 24 जून को उद्घाटित हुई और 28 जून तक चलने वाली मशहूर चित्रकार सैयद हैदर रजा के चित्रों की प्रदर्शनी इसलिए उल्लेखनीय हो उठी है, क्योंकि इसे 'गाइडेड वॉकथ्रू' के साथ आयोजित किया गया है । रजा साहब के निधन के बाद देश में उनके चित्रों की होने वाली पहली प्रदर्शनी के रूप में बताये जा रहे इस आयोजन में सुबह 11 बजे और शाम 4 व 5 बजे अंग्रेजी में, सुबह साढ़े ग्यारह बजे मराठी में तथा शाम साढ़े चार बजे हिंदी में रजा साहब की कला यात्रा से परिचित कराने वाले गाइड उपलब्ध होंगे । इस व्यवस्था ने प्रदर्शनी देखने आने वाले लोगों को एक नए अनुभव से तो परिचित कराया ही है, साथ ही किसी प्रदर्शनी को और सार्थक व प्रभावी बनाने की तरकीब भी बताई/बनाई है । 
लोगों तक कला की पहुँच बनाने को लेकर सामने आये हाल-फिलहाल के यह कुछ उदाहरण उम्मीद जगाते हैं कि आम जन को कला के आस्वाद से परिचित करने/कराने के अवसरों में और वृद्धि होगी ।  


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