।। रंगीला जोकर ऑफ द ग्रेट इंडियन सर्कस ।।

भारत की आजादी की लड़ाई के दौर में पली-बढ़ी तथा स्वतंत्रता के तुरंत बाद के दौर में सर्जनात्मक रूप से सक्रिय हुई पीढ़ी के अग्रणी नामों में एक मक़बूल फ़िदा हुसेन के निधन को आज सात वर्ष हो गए हैं । आधुनिक भारतीय चित्रकला में निर्णायक परिवर्तन लाने वाले चुनिंदा चित्रकारों में एक हुसेन साहेब में 96 वर्षीय जीवन के अंतिम दिनों तक भी जो ऊर्जा और रचनात्मक बेचैनी थी, वह अपवादस्वरूप ही दिखाई देती है । हुसेन साहेब की ख्याति एक चित्रकार के रूप में तो है ही, पर उनका कवि रूप भी उल्लेखनीय है । कविता में, खासकर हिंदी कविता में उनकी गहरी दिलचस्पी थी । उन्होंने खुद भी समय समय पर कविताएँ लिखीं । दुबई और लंदन में निर्वासित जीवन जीते हुए जीवन के अंतिम वर्षों में तो उन्होंने नियमित रूप से बहुत सी कविताएँ लिखीं । उनमें से जो कविताएँ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो सकीं, उनमें 'रंगीला जोकर ऑफ द ग्रेट इंडियन सर्कस' शीर्षक कविता मुझे खास तौर से संवेदित करती हुई लगती रही है । तीन जुलाई 2008 को लिखी गई यह कविता लिखे जाने के करीब एक महीने बाद हुसेन साहेब ने अपने सम्मान में लंदन में आयोजित हुए रात्रि-भोज में सुनाई थी, जिसे भारत में जन्मे लंदन के प्रतिष्ठित डॉक्टर लॉर्ड खालिद हमीद ने आयोजित किया था । 'रंगीला जोकर ऑफ द ग्रेट इंडियन सर्कस' में आस्था और अनिश्चितता का पीड़ित धुँधलका है, तो लौकिक संबंधों व ऐन्द्रिय प्रतीतियों का 'संसार' भी है । इस कविता में स्वयं का मजाक बनाते हुए मोह के बंधनों के साथ-साथ अनकही पीड़ा ने जो अभिव्यक्ति पाई है, वह इस कविता को उल्लेखनीय बना देती है । हुसेन साहेब की पुण्यतिथि पर उनकी यह कविता याद करना मुझे मौजूँ लग रहा है । 

क्या ख़ूब तमाशा है ?
दुनिया मुझे देख रही है
इसलिए कि ग्रेट इंडियन सर्कस का
एक रंगीला जोकर हूँ
हँसता हूँ, रुलाता हूँ
रंग-बिरंगे कपड़े पहनता हूँ
न सर पर टोपी, न पैर में जूता
कभी हाथी का साथी तो कभी घोड़े की सवारी
हाथ में डुगडुगी तो बंदर का मदारी
हाथ में हंटर तो क़ब्ज़े में पिंजरे का शेर
जिसे देख बकरी मिनमिनाये
ख़ैर, पर कब तक ?

क्या ख़ूब तमाशा है ?
लोग मुझे देख रहे हैं
क्योंकि मैं ग्रेट इंडियन सर्कस का
एक रंगीला जोकर हूँ
हाथ में लंबा ब्रश है तो रंगों की पोटली है
गंगा किनारे नहाती गाँव की छोरी है
तो पास से साइकिल चलाता, सीटी बजाता शहर का छोरा है
गाँव और शहर के बीच
पुलिस चौकी है तो अमन है
शांति ओम शांति संगीत है
हाउसफुल है
क्योंकि दीवार पर शाहरुख़ का बहुत बड़ा पोस्टर चिपका है
क्या यह चित्रकला प्रदर्शनी है ?
नहीं, नहीं
यह ग्रेट इंडियन सर्कस है
जिसका मैं रंगीला जोकर हूँ
लेकिन लोग समझते हैं कि मैं पेंटर हूँ और लोगों को पसंद है
तो उन्हें खुश करने के लिए मैं पेंटर बन जाता हूँ

आख़िर मैं रंग रंगीला जोकर ही तो हूँ
कितने लिबास बदलता हूँ
कितने शहरों से गुजरता हूँ
कितने मकान बदलता हूँ
कई ज़बाने बोलता हूँ
और हर ज़बान ही नहीं है
कई चेहरे मेरे पास हैं
बहरुपिया हूँ
बहरुपिया या सिर्फ़ पिया
क्योंकि मेरे चाहने वाले बहुत हैं
मुझे ख़रीदने वाले बहुत
इसलिए कि मैं किसी भी अण्डे पर बैठूँ
तो एक मिनट में सोना

वाह रे, मेरे सर्कस, वाह !
दुनिया का अनोखा सर्कस
जहाँ हाथी, घोड़ा, बंदर, भालू, बकरी, शेर साथ हैं
मर्द, औरत सब एक परिवार की तरह
एक बहुत बड़े तम्बू के साये तले
सोते, खाते, पीते हैं
साथ काम करते हैं
यहाँ जानवर और इंसान में कोई भेदभाव नहीं है
सबका एक ही भाव
कुछ कमाया तो आपस में बाँट खाया
कभी नहीं देखा कि बंदर फाइव स्टार होटल में
तो शेर किसी धर्मशाला में
बकरी किसी शेख़ के हरम में
तो घोड़ा किसी ताँगे वाले के गैराज में

मैं जानता हूँ कि इस आलीशान टेंट में
भीड़ एक बिलियन से ज़्यादा हो चुकी है
यहाँ जानवर घट रहे हैं
इनसान की गिनती बढ़ती चली जा रही है
लिहाजा थोड़ी-बहुत धक्का-मुक्की तो लाजिम है
मगर हुआ ये
एक नामाकूल धक्के ने मुझे बेघर कर दिया

लेकिन ये राने दरगाह जोकर की तरह मस्त है
रंगों के नशे में झूम रहा है
दुनिया की शाह राहों पर
द शो गोज ऑन के नारे लगा रहा है
तालियाँ बज रही हैं
सिक्के खनखना रहे हैं ।

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