नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट द्धारा आयोजित जितिश कलत की प्रदर्शनी को मनमाने तरीके से मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी कहने/बताने के पीछे नेचर मोर्ते की मंशा आखिर क्या है ?

राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट) में 14 जनवरी को उद्घाटित हो रही जितिश कलत की बड़ी प्रदर्शनी एक प्राइवेट गैलरी नेचर मोर्ते की अनपेक्षित कार्रवाई के कारण खासे विवाद में फँस गई है । विवाद का कारण नेचर मोर्ते का इस प्रदर्शनी को जितिश कलत की मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी के रूप में प्रचारित करना है, जबकि प्रदर्शनी के आयोजनकर्ता नेशनल गैलरी की तरफ से ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है । मजे की बात यह है कि जितिश कलत की इस प्रदर्शनी में नेचर मोर्ते की कोई सीधी भागीदारी नहीं है; इस प्रदर्शनी से नेचर मोर्ते का सिर्फ यही संबंध है कि जितिश कलत के साथ उनका व्यापारिक गठबंधन है - और इस नाते से उनके काम की मार्केटिंग करने से लेकर उनका काम बेचने की जिम्मेदारी नेचर मोर्ते की है । जितिश कलत और नेचर मोर्ते के बीच के इस गठबंधन के कारण हो सकता है कि नेशनल गैलरी में आयोजित हो रही प्रदर्शनी में प्रदर्शित होने वाला कुछ काम नेचर मोर्ते के यहाँ से पहुँच रहा हो, और जो काम जितिश कलत ने खास इस प्रदर्शनी के लिए किया होगा - नेचर मोर्ते उस पर भी अपना अधिकार मान रहा होगा; लेकिन इस आधार पर नेचर मोर्ते को इस प्रदर्शनी को मनमाने तरीके से परिभाषित और प्रचारित करने का अधिकार मिल जाता है क्या ?
जितिश कलत की इस प्रदर्शनी को नेशनल गैलरी और भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है, और उनकी तरफ से प्रसारित निमंत्रण पत्र में इस प्रदर्शनी को जितिश कलत की मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी नहीं कहा गया है । इसी आधार पर, कला जगत में यह आरोप सुनाई दे रहा है कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के इस आयोजन को नेचर मोर्ते अपने व्यापारिक लाभ के लिए मनमाने तरीके से परिभाषित और प्रचारित कर रहा है । रेट्रोस्पेक्टिव (पुनरावलोकन) शब्द एक बड़ा भाव रखता है, और कला जगत में इसका अर्थ यह माना/समझा जाता है कि एक कलाकार के प्रतिनिधि काम के सहारे उनके संपूर्ण कामकाज का अवलोकन हो । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वरिष्ठ कलाकारों - जिनसे अब कुछ और 'नया' करने की उम्मीद ख़त्म हो चुकी होती है - के कुल काम का प्रतिनिधित्व करते काम की प्रदर्शनी होती है । स्वाभाविक रूप से रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी की खास महत्ता होती है और इस महत्ता के चलते इसे व्यापारिक दृष्टि से भी उपयोगी माना/पाया जाने लगा । अब जैसा कि किसी भी धंधे में होता ही है, फायदे की बातों की पैरोडी - कभी कभी तो फूहड़ पैरोडी बनने लगती है; सो कला के बाजार में रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी का जलवा बढ़ा तो उसकी नकल के रूप में मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी भी होने लगी । कला बाजार का यह खेल अमेरिकी व यूरोपीय कला बाजार में तो खूब धड़ल्ले से फल-फूल रहा है, और जिसकी नकल भारत जैसे देशों में भी छिटपुट रूप से होने तथा देखने को मिलने लगी है - हालाँकि यहाँ अभी इसके इक्का-दुक्का उदाहरण ही मिलेंगे ।
मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव अपने आप में बड़ी कन्फ्यूजिंग टर्म है : किसी भी कलाकार के कला जीवन के मिड-कॅरियर को कैसे चिन्हित/परिभाषित किया जायेगा ? जितिश कलत का ही उदाहरण लें - 1974 में जन्में जितिश कलत के कला जीवन को अभी करीब 20 वर्ष हुए हैं । आमतौर पर इस उम्र में तो किसी कलाकार की पहचान/प्रतिष्ठा बनना शुरू होती है । ऐसे में, इस समय को उनके मिड-कॅरियर के रूप में देखने/समझने का भला क्या आधार हो सकता है ? हालाँकि जितिश कलत खुशकिस्मत हैं और यह उनकी प्रतिभा का जादुई करिश्मा है कि इस उम्र में ही उन्होंने कला जगत में अपना एक खास मुकाम बना लिया है । देश-विदेश के कला जगत में उनकी जो पहचान/प्रतिष्ठा है, वह एक विरल उदाहरण है । इस आधार पर, इस समय को उनके मिड-कॅरियर के रूप में देखना/समझना और भी सवालिया मामला बन जाता है । जितिश कलत ने कला जगत में सफलता की जो ऊँची छलाँग लगाई है, उसे उन्होंने वास्तव में अपनी कल्पनाशीलता तथा प्रयोगशीलता के सृजनात्मक रूपांतरण से संभव किया है । जितिश कलत ने अपने कामों में, खासतौर से पब्लिक नोटिस सीरीज में जिस तरह से राजनीतिक घटनाओं व प्रसंगों को; महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू के भाषणों को तथा वर्ष 2002 के गुजरात दंगों को विषय बनाया है - उससे उनकी राजनीतिक चेतना और उसे कला में रूपांतरिक करने की उनकी क्षमता का पता तो चलता ही है; साथ ही यह संकेत भी मिलता है कि उनके पास 'विषयों' की कोई कमी नहीं रहने वाली है ।
कला प्रेक्षकों तथा जितिश कलत के काम में बारीकी से दिलचस्पी रखने वाले लोगों को यहाँ से जितिश कलत के सामने दो रास्ते खुलते हुए दिख रहे हैं : कुछेक लोगों को लगता है कि जितिश कलत को जो कुछ भी 'महान' करना था वह उन्होंने कर लिया है, और अब आगे वह अपने को सिर्फ दोहरायेंगे; अन्य कुछेक का मानना/कहना लेकिन यह है कि जितिश कलत की अभी तक की कला-यात्रा को देख कर लगता है कि अभी उन्हें बहुत कुछ करना है और कला जगत में लंबी पारी खेलनी है । जितिश कलत इन दोनों में से जिस भी रास्ते पर आगे बढ़ें - अभी उनके लिए मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव का सोचना उनके साथ; और सिर्फ उनके साथ ही नहीं, उनके काम में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के साथ भी अन्याय होगा । ऐसे में, यह समझना मुश्किल ही है कि नेचर मोर्ते जितिश कलत की अभी हो रही प्रदर्शनी को मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव कहने/बताने की जल्दी में क्यों है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि नेचर मोर्ते भी मान रही है कि जितिश कलत को जो कुछ भी करना था या जो कुछ भी वह कर सकते थे, वह उन्होंने कर लिया है तथा अब आगे उनसे और कुछ नया हो सकने की उम्मीद नहीं है - इसलिए रेट्रोस्पेक्टिव के नाम पर जितना फायदा उठाया जा सकता है, वह उठा लिया जाना चाहिए ?
जितिश कलत की 14 जनवरी को उद्घाटित हो रही प्रदर्शनी के आयोजकों - नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट तथा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय - की लाइन से अलग लाइन पकड़ कर, मनमाने तरीके से नेचर मोर्ते द्धारा प्रदर्शनी को मिड-कॅरियर रेट्रोस्पेक्टिव घोषित करते हुए प्रचारित करने से जो विवाद खड़ा हुआ है, वह कला के व्यवसायीकरण का एक दिलचस्प उदाहरण भी बन गया है ।

Comments

Popular posts from this blog

'चाँद-रात' में रमा भारती अपनी कविताओं की तराश जिस तरह से करती हैं, उससे लगता है कि वह सिर्फ कवि ही नहीं हैं - असाधारण शिल्पी भी हैं

गुलाम मोहम्मद शेख की दो कविताएँ

निर्मला गर्ग की कविताओं में भाषा 'बोलती' उतना नहीं है जितना 'देखती' है और उसके काव्य-प्रभाव में हम भी अपने देखने की शक्ति को अधिक एकाग्र और सक्रिय कर पाते हैं