जया मिश्र की कविताएँ

जया मिश्र की कविताएँ अपनी परिभाषा जैसे खुद गढ़ने की जरूरत को रेखांकित करती हैं - इसलिए उन्हें किसी सामान्य या सार्वजनीन परिभाषा में बाँधना असंभव जान पड़ता है । उनकी कविताओं में शब्दों के एक विशिष्ट संयोजन के भीतर जिस सृष्टि का आभास होता है, वह इतनी अनोखी और अद्धितीय जान पड़ती है कि उसकी तुलना किसी दूसरी सृष्टि से करना असंभव भी जान पड़ता है और गैर जरूरी भी । जया जी की कविताएँ अपना एक निजी और स्वायत्त यथार्थ गढ़ती हैं जिसमें हमारे तमाम अनुभव जगह बनाते और पाते हैं; यही कारण है कि उनकी कविताओं में जीवन की विभिन्न संवेदनाएँ, अनुभव, विश्वास और शंकाएँ जिस प्रखरता के साथ अभिव्यक्त हुईं हैं उनमें हम अपने से साक्षात् कर लेते हैं । हाल ही में उनका पहला कविता संग्रह 'पुरानी डायरी से' प्रकाशित हुआ है । इसमें कविताओं के साथ प्रस्तुत चित्रकार अक्षय आमेरिया के रेखांकनों ने कविता संग्रह को तो जीवंत बनाया ही है, साथ ही कविताओं में छिपे अर्थों की गूँज को भी और विस्मयकारी-सा व आकर्षक बनाया है । जया मिश्र के इस कविता संग्रह का आकल्पन भी अक्षय आमेरिया जी ने किया है । यहाँ प्रस्तुत कविताएँ 'पुरानी डायरी से' साभार ली गईं हैं ।  

।। अन्तर्मन ।।

मैं उससे कभी मिली नहीं
पर हर बार महसूसा है
कि मेरे अन्दर भी कोई रहता है
          मैं उसे जानती भी नहीं
          उसे कभी देखा भी नहीं
          पर मुझे लगता है वह
मुझसे अलग है नहीं
मैं उससे अलग नहीं
लेकिन अलग नहीं होने के
          बाद भी हम अलग हैं
          जल की सतह पर बुलबुले सा
          उसमें व मुझमें अन्तर है ।

मैं अधिकतर हँसती हूँ
वह चुपचाप रोता है
मैं बोलती रहती हूँ
          वह खामोश रहता है
          मेरी खुशी अलग है
          उसकी खुशी अलग है
वो शांत व स्थिर
मैं चंचल व अस्थिर
जैसा आप मुझे देखते हैं
          मैं वैसी नहीं हूँ
          मैं वैसी ही हूँ
          जैसा वह है ।
मैं मात्र स्वरूप हूँ
वह मेरा अस्तित्व है
हाँ, शायद वही
          जो मुझसे अलग
          वहीं होते भी अलग है
          वही मेरा अन्तर्मन है ।

।। अच्छा हुआ ।।

ये जो हुआ
अच्छा ही हुआ
जिनसे उम्मीदें थीं, टूट गईं
झूठा नाता था 
छूट गया ।
जैसा सोचा
जाना, वैसा नहीं था
तुम्हारी कमजोरी-लाचारी का
अहसास नहीं था तब ।
अच्छा है
सच सामने आ गया
अच्छा है, सच को जान लिया ।

अच्छा ही हुआ
किसी नतीजे पर पहुँचे
तय किया
अब चलना आसान होगा
न कोई उम्मीद
न कोई सहारा
हमारा रास्ता
संकल्प हमारे ले ही जायेंगे
मंजिल तक
ये वक्त भी गुजर ही जायेगा
वक्त का मरहम भर देता है
हर घाव
यह घाव भी एक दिन भर ही जायेगा

जो हुआ
अच्छा ही हुआ ।

।। आँखें ।।

तुम कहो
न कहो,
आँखें
तो कह देती हैं ।
भेद
जो दिल में है,
यूँ ही खोल देती हैं ।

।। शुक्रिया ।।

शुक्रिया वक्त का
जिसने, हमें बतला दिया ।
जीवन कैसे जीना है
सिखा दिया ।

।। अकेले ।।

गर होते अकेले
तो गम न होता अकेलेपन का

गम तो इस बात का है साथी
कि इस भीड़ में भी अकेले हैं ।

Comments

  1. These poems of respected Jaya Shri Jee are truly touching the heart.
    S.K.Sahni

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