सलमान तूर की कला

मुझे क़तई यह इल्म नहीं था कि नेचर मोर्ते गैलरी मुझे इतने अनोखे आश्चर्य से भर देगी । दरअसल करीब साढ़े तीन वर्ष पहले न्यूयॉर्क में एकॉन गैलरी में जब पहली बार मैंने न्यूयॉर्क में रह रहे पाकिस्तानी चित्रकार सलमान तूर की पेंटिंग्स को देखा था, तब मैंने यह नहीं सोचा था कि उनकी पेंटिंग्स मुझे दिल्ली में भी देखने को मिल सकेंगी । इसीलिए नेचर मोर्ते गैलरी में सलमान तूर की पेंटिंग्स की एकल प्रदर्शनी को देखा, तो स्वाभाविक ही मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । हालाँकि इंडिया ऑर्ट फेयर के पिछले दिल्ली संस्करण में एकॉन गैलरी के सौजन्य से उनकी दो/तीन पेंटिंग्स देखने का मौका मिला था । लेकिन नेचर मोर्ते में तो सलमान तूर की सृजनात्मकता का खजाना खुला मिला । दिल्ली ही नहीं, भारत में उनके चित्रों की यह पहली एकल प्रदर्शनी है । उनकी कुछेक पेंटिंग्स हालाँकि इंडिया ऑर्ट फेयर से पहले कोच्ची-मुज़िरिस बिएनाले में भी प्रदर्शित चुकी हैं । 
सलमान तूर के चित्रों के केंद्र में मनुष्य है, खासकर युवा मनुष्य - जीवन और रोजमर्रा के क्रियाकलापों में संलग्न, और इसलिए उनके चित्रों में प्रायः एक से अधिक ही मनुष्य दिखते हैं । किन्हीं चित्रों में एक ही मनुष्य यदि है भी, तो किसी क्रियाकलाप में लगे होने के कारण वह अकेले होने का अहसास नहीं कराता है । उनके चित्रों में मनुष्य पुरुष भी है और स्त्री भी । उनके चित्रों के मनुष्य किसी देशकाल की सीमा में आबद्ध नहीं हैं, उनकी बनावट से यह अटकल भी नहीं लगाई जा सकती है कि वह दुनिया के किस भूभाग से हैं । लेकिन हाँ, उम्र और वातावरण के हिसाब से वह मौजूदा समय का युवा मनुष्य ही है । सलमान तूर ने अपना बचपन और किशोरावस्था लाहौर में बिताई है, और फिर जब फाईन ऑर्ट में मास्टर्स करने न्यूयॉर्क गए तो फिर वहीं रह गए । इस तरह उनकी सोच और उनके व्यवहार में दो सभ्यताओं व संस्कृतियों का प्रभाव है, जो उनके काम में अभिव्यक्ति पाता है । उनके चित्रों में मानवाकृतियों की भंगिमाओं में संवेदनात्मक स्पर्श, उल्लास, गहन चिंतन की तन्मयता में स्वयं की तलाश तथा मानवीय सहअस्तित्व को बचाए/बनाए रखने की ललक को अपने भीतर छिपाए मनुष्य का चित्रण है ।  
सलमान तूर के चित्रों की 'आई नो अ प्लेस' शीर्षक प्रदर्शनी को 4 जनवरी तक देखा जा सकता है । 
उनकी कुछेक पेंटिंग्स को इन तस्वीरों में देखा जा सकता है :







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