मृदविका की नृत्य प्रस्तुति नंदिता की कला यात्रा को सीधे ट्रांसलेट करने की बजाये एक अलग अनुभव-दृश्य की तरह अभिव्यक्त करती है और ऐसा करते हुए वह नंदिता के रचना-संसार की व्यापकता व शाश्वतता को रेखांकित करती है

पिछले दिनों पहले नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में और फिर गुरुग्राम की एक ऑर्ट गैलरी में नंदिता रिची की पेंटिंग्स तथा उनकी नृत्यांगना पुत्री मृदविका की नृत्य-प्रस्तुति के जरिये चित्रकला और नृत्य कला के अंतर्संबंधों का एक अनोखा नजारा देखने को मिला । नंदिता एक लैंडस्केप पेंटर हैं, और प्रकृति चित्रण को लेकर समकालीन कला जगत में उनकी खास पहचान है । उनके लैंडस्केप वास्तविक से दिखते जरूर हैं, लेकिन वह वास्तविक नहीं हैं क्योंकि वह किसी जगह विशेष का आभास नहीं देते हैं । उनके लैंडस्केप की जड़ें प्रकृति में हैं, लेकिन जिन्हें उन्होंने अपनी कल्पनाशीलता से अन्वेषित (इनवेंट) किया है । मृदविका एक प्रशिक्षित नृत्यांगना हैं, और इंडियन-ऑस्ट्रेलियन कोरियोग्राफर एश्ले लोबो की कंपनी डांसवर्क्स अकेडमी की वरिष्ठ सदस्या हैं । नंदिता व मृदविका के काम की 'प्रकृति' में बड़ा अंतर तो है ही, स्थिति यह भी थी कि दोनों कला माध्यमों के बीच अंतर्संबंध को स्थापित करने का निर्वाह मृदविका को ही करना था; नंदिता को तो जो करना था, वह कर चुकी थीं और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान के अनुरूप ही कर चुकी थीं । चुनौती मृदविका के सामने ही थी - उन्हें एक तरफ नृत्यकला के अनुशासन का पालन करना था, दूसरी तरफ नंदिता की पेंटिंग्स में अभिव्यक्त होते भावों के साथ तालमेल बैठाना था; और यह सब करने के लिए उनके पास नृत्यकला के लिए जरूरी सपोर्ट सिस्टम भी नहीं था, पर्याप्त मंच तक उनके पास नहीं था । प्रदर्शित पेंटिंग्स के सामने गैलरी के फर्श पर ही उन्हें अपनी प्रस्तुति देनी थी ।

ऐसे में डर और खतरा यह था कि मृदविका सतही तौर पर नंदिता की पेंटिंग्स के भाव को ही प्रस्तुत करतीं या करने की कोशिश करतीं, लेकिन उन्होंने अपने चिंतन और यथार्थ बोध के सहारे नंदिता के चित्र-संसार को काफी सत्यता के साथ ग्रहण करना पसंद किया और दो कला अभिव्यक्तियों के परस्पर मिलने वाले बिंदु पर बनने वाली तीसरी और बिल्कुल नई कला की प्रतीक बनीं । यह बात अपने आप में अनोखी और विलक्षण है कि मृदविका ने बचपन से ही अपने घर में चित्रकला का माहौल देखा/जाना, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने लिए नृत्य को चुना । ऐसे कोई जानकारी नहीं है कि उन्होंने पहले कभी किन्हीं और चित्रकार की पेंटिंग्स के साथ तारतम्य स्थापित करने का प्रयास किया हो और कोई प्रस्तुति दी हो । अपनी माँ, नंदिता की पेंटिंग्स के साथ तारतम्य स्थापित करने का मौका भी शायद उन्हें तब मिला, जब नंदिता ने अपनी कला को वियरेबल सेगमेंट की तरफ बढ़ाया । ऐसे में, मृदविका के सामने दोहरी चुनौती थी - एक तरफ उन्हें नंदिता की चित्रभाषा के साथ तालमेल बनाना था, और दूसरी तरफ वियरेबल सेगमेंट की जरूरतों का ख्याल रखना था । उनकी प्रस्तुति इस बात का श्रेष्ठ रचनात्मक उदाहरण बनी कि कैसे एक प्रतिभाशाली नृत्यांगना आंगिक रूपों, मुद्राओं, विन्यासों, हस्तकों तथा अंगसंचालन के जरिये चुनौतियों को तो निभाती ही है, साथ ही यह भी दिखाती है कि नृत्य में चित्रकला के शिल्प को कैसे गढ़ा जा सकता है । नंदिता की पेंटिंग्स में अभिव्यक्ति पाती चित्रभाषा में कल्पनाशीलता व संवेदनशीलता का जो निराकार भाव है, मृदविका ने उसे अपनी नृत्य संरचना में दैहिक संकेतों के माध्यम से सूक्ष्मता व प्रखरता के साथ साकार किया ।

नंदिता की चित्रभाषा को मृदविका की नृत्यभाषा में रूपांतरित होते हुए देखना वास्तव में एक अप्रतिम अनुभव से गुजरने जैसा है । यह अनुभव नृत्यांगना के रूप में मृदविका की नैसर्गिक प्रतिभा, ऐक्सप्रेशन व फ्लैक्सिबिलिटी की ट्रेनिंग के कारण ही संभव हो सका है । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि चित्रकार के रूप में नंदिता तो अपना काम कर चुकी थीं, अब जो करना था वह मृदविका को ही करना था - और उन्होंने उसे खासी कुशलता के साथ किया । नंदिता ने जिस भाव से अपने चित्रों को रचा है, उसे मृदविका ने अपने बोध के अनुसार अपनी कला में शिफ्ट कर लिया । दरअसल एक कलाकार किसी दूसरी कला को अपने भाव से देखता है, क्योंकि उसके जीवनानुभव अलग होते हैं, देखने का नजरिया अलग होता है । यूँ भी पेंटिंग - वह चाहें किसी की भी हो - एकदम से तो निकलती नहीं है, वह किसी जादु का नतीजा तो नहीं ही होती है, उसके पीछे पूरी प्रक्रिया होती है । इसीलिए मृदविका ने नंदिता की पेंटिंग्स को उसी भाव से नहीं देखा होगा, जिस भाव से नंदिता ने उन्हें रचा है; मृदविका ने उन्हें अपने अनुसार ही ग्रहण किया होगा । मृदविका की नृत्य प्रस्तुति से यह आभास भी मिला कि मृदविका ने भले ही अपनी माँ के कला-माध्यम को नहीं अपनाया, लेकिन उसे गहरे से आत्मसात अवश्य किया है - अन्यथा इतनी प्रभावी प्रस्तुति दे पाना उनके लिए शायद ही संभव हो पाता । मृदविका की प्रस्तुति नंदिता की सृजन यात्रा को सीधे ट्रांसलेट करने की बजाये एक अलग अनुभव-दृश्य की तरह अभिव्यक्त करती है और ऐसा करते हुए वह नंदिता के रचना-संसार की व्यापकता व शाश्वतता को रेखांकित करती है ।
    

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