बच्चों की चित्रकला

देवी प्रसाद की लिखी एक अनोखी पुस्तक 'शिक्षा का वाहन कला' मुझे अभी हाल ही में अचानक हाथ लगी । शिक्षाविद व कलाविद के रूप में ख्याति प्राप्त देवी प्रसाद, रवीन्द्रनाथ ठाकुर के स्कूल शान्तिनिकेतन के स्नातक थे । सेवाग्राम की आनंद-निकेतन शाला में कला विशेषज्ञ के रूप में काम करते हुए बालकों के साथ हुए अपने अनुभवों के आधार पर देवी प्रसाद ने करीब पचास वर्ष पहले यह पुस्तक तैयार की थी । यह पुस्तक बच्चों की कला को लेकर पैदा होने वाले सवालों का बड़े ही तर्कपूर्ण, व्यावहारिक तथा दिलचस्प तरीके से जवाब देती है । उल्लेखनीय है कि बच्चों के बनाये चित्रों को लेकर आमतौर पर काफी सारी गलतफहमियां हम बड़े पाल लेते हैं । जहाँ एक ओर बच्चों द्वारा बनाये चित्रों को हम काफी हल्के तौर पर लेते हैं वहीं दूसरी ओर बाल चित्रकला को लेकर हमारी काफी सारी जिज्ञासाएं भी होती हैं । इस पुस्तक में सवाल और जवाब के रूप में बात कही गई है । पुस्तक में दिए गए सवाल और उनके जवाब हमारी जिज्ञासाओं को सचमुच दिलचस्प तरीके से पूरा करते हैं । कुछ विशेष सवाल और उनके जवाब यहाँ प्रस्तुत हैं :
सवाल : बच्चों के चित्रों का अभिप्राय बहुत दफे मुझे समझ में नहीं आता है, तो क्या वह बच्चों से पूछ लेना ठीक है ?
जवाब : हाँ, बच्चे ने जो चित्र बनाया है अक्सर वह उसका मौखिक वर्णन करना भी पसंद करता है । मैंने अक्सर पाया है कि अपने चित्र पर या उससे संबद्ध किसी विषय पर साथ-साथ लेख लिखना कुछ बच्चों को खूब अच्छा लगता है, इसलिए चित्र का अभिप्राय पूछ लेने में कोई नुकसान नहीं है । लेकिन यह पूछा इस तरह जाना चहिए कि बच्चा जवाब न देना चाहे तो उसके लिए बचने का मौका होना चाहिए । क्योंकि उसे जो कहना था उसने चित्र में कह ही दिया है, इसके बाद भी उसे कुछ कहना है तो उसे कह सकेगा । हमें उसकी भाषा और उसका मन समझना चाहिए । इस संबंध में जितना हमारा अनुभव बढ़ेगा, उतना ही हम बिना पूछे बच्चों के चित्रों के अभिप्राय स्वयं समझने में समर्थ होंगे । मनोवैज्ञानिक तो बच्चों के चित्रों से केवल चित्रों का अभिप्राय ही नहीं, उनके मन की गहराई की बातें भी समझने का प्रयास करते हैं ।
सवाल : बच्चों ने रंगों का गलत उपयोग किया हो, तो उन्हें सुधारना चाहिए क्या ?
जवाब : गलत माने क्या ? क्या अपने कपड़ों पर लगा लिया, या जमीन पर बिखेर दिया या एक-दूसरे के मुहं पर या कपड़ों पर लगा दिया । अगर ऐसा हो, तो जरूर बच्चों को इसके बारे में प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए । किंतु अगर चित्र के अंदर उसने अपने ढंग से रंगों का उपयोग किया है, तो उसे आप गलत कैसे कह सकते हैं ?
सवाल : एक बच्चा चित्र बनाता है, जिसका कोई अर्थ नहीं दिखता । तो क्या उससे पूछना नहीं चाहिए कि क्यों भाई, क्या सोच के चित्र बनाया है ?
जवाब : पूछने में कोई हर्ज नहीं है । अच्छा ही है । इससे उसका चिंतन विकसित हो सकता है । किंतु यह ऐसे नहीं पूछा जाना चाहिए कि उसे लगे जैसे उसे डपटा जा रहा है ।
सवाल : बच्चे अगर गलत रंग का इस्तेमाल करते हैं, जैसे पेड़ को बैंगनी या लाल बनाते हैं तो क्या उसे ठीक करने के लिए नहीं कहना चाहिए ?
जवाब : प्रकृति का पेड़ अलग होता है और कलाकार के मन का पेड़ अलग । और फिर बच्चों का तो बिल्कुल ही अलग । इसमें आनंद ही लिया जाना चाहिए । यह उनकी कवि-कल्पना होती है । उसे कौन सुधार सकता है ?
सवाल : बच्चा अगर पूछे कि वह क्या बनाये, उसे चित्र बनाने का कोई विषय न सूझ रहा हो तो क्या करना चाहिए ?
जवाब : उसे कोई कहानी सुना कर, कुछ प्रत्यक्ष अनुभव करा कर विषय तय करने के लिए प्रेरित करना चाहिए । विषय भी सुझाया जा सकता है ।
सवाल : महान कलाकारों की कृतियों से सीखने और उनके अनुभवों से लाभ उठाने का मौका बच्चों को किस तरह देना चाहिए ?
जवाब : आमतौर पर सयानों का प्रभाव बच्चों की कला पर पड़े, तो उनकी स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है । महान कलाकारों की कृतियों से सीखने के लिए और उनके अनुभव से लाभ उठाने के लिए बहुत समय है । दस-बारह वर्ष के बाद बच्चा जब सयानों के जगत में प्रवेश करता है तब अगर उसे यह अनुभव मिले, तभी वह स्वाभाविक माना जाएगा । हाँ, कला-बोध की दृष्टि से ये कृतियाँ बच्चों को देखने को मिलती रहें, तो कोई नुकसान नहीं है ।
सवाल : कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जो आलंकारिक पैटर्न बनाना ही पसंद करते हैं । क्या उन्हें ऐसा करने देना चाहिए ?
जवाब : पैटर्न ही केवल बनाते रहें, यह ठीक नहीं है । उन्हें चित्र बनाने के लिए भी उत्साहित करना चाहिए । यूँ ऐसे कुछ अपवाद हो सकते हैं, जबकि बच्चा हमेशा नए-नए पैटर्न बनाने वाला हो । ऐसी हालत में उसी प्रवृत्ति का विकास करना अच्छा होगा ।
सवाल : किस उम्र तक बच्चों को अपने ही मन से चित्र बनाने देना चाहिए ?
जवाब : इसका कोई नियम नहीं बनाया जा सकता । कुछ बच्चों के लिए तो बिना सुझाव के काम कर पाना कभी भी संभव नहीं होता और उन्हें हमेशा ही सलाह की जरूरत होती है । लेकिन कई बच्चे ऐसे भी होते हैं, जो अपनी मर्जी से काम करते-करते आगे बढ़ जाते हैं ।

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