कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले के चौथे संस्करण के लिए अनिता दुबे को क्युरेटर बना कर एक महिला कलाकार पर भरोसा करके कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले के आयोजकों द्वारा लूटी गई वाहवाही पर हैशटैग मीटू अभियान ने लेकिन पूरी तरह से पानी फेर दिया है

कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले की तैयारियों को जैसे ग्रहण लग गया है । केरल में आई विनाशकारी बाढ़ से हुए नुकसान को तो बिएनाले की तैयारियों ने किसी तरह झेल लिया था, लेकिन बिएनाले से जुड़े रियाज कोमु, राहुल भट्टाचार्या तथा वॉल्सन कूरमा कोल्लेरी जैसे बड़े नामों के मीटू हैशटैग में फँसने के चलते कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले खासी मुसीबत में फँस गया है, और इससे उबरने की तमाम कोशिशों के बावजूद बिएनाले की तैयारियाँ सुस्त पड़ गई हैं । तैयारियाँ यूँ तो चल रही हैं, लेकिन बिएनाले से जुड़े लोगों का ही कहना है कि उनमें पहले जैसा जोश व उत्साह नहीं है । बिएनाले के लिए वॉलिंटियर्स के चुनाव का काम तो लगभग ठप ही बताया/सुना जा रहा है, क्योंकि वॉलिंटियरिंग के लिए युवा कलाकार आने रुक गए हैं । बिएनाले से जुड़े लोगों का कहना/बताना है कि बिएनाले से जुड़े बड़े और प्रभावी लोगों के यौन उत्पीड़न के आरोपों के घेरे में आने के बाद बिएनाले के बाकी पदाधिकारी मनोवैज्ञानिक व नैतिक दबाव में आ गए हैं, जिसके चलते बिएनाले की तैयारियों पर खासा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । उल्लेखनीय है कि मीटू हैशटैग की चपेट में आए रियाज कोमु कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले के सह-संस्थापक और सचिव हैं, जबकि राहुल भट्टाचार्या इस बिएनाले के क्यूरेटर रहे हैं, और वॉल्सन कूरमा कोल्लेरी बिएनाले फाउंडेशन में सहयोगी के साथ-साथ बिएनाले के एक प्रमुख कलाकार हैं । मामले के सामने आते ही बिएनाले फाउंडेशन की मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग हुई, जिसमें रियाज कोमु को तत्काल प्रभाव से सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है, और इस तरह मीटू हैशटैग अभियान से हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश की गई है, लेकिन लगता है कि नुकसान कुछ ज्यादा बड़ा हो गया है - और यह समझना मुश्किल हो रहा है कि नुकसान की भरपाई कैसे की जाए ?
विडंबना की बात यह हुई है कि 12 दिसंबर से शुरू होने वाले कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले के चौथे संस्करण के लिए अनिता दुबे को क्युरेटर बना कर एक महिला कलाकार पर भरोसा करके बिएनाले के आयोजकों ने जो वाहवाही लूटी थी, उस पर मीटू हैशटैग ने पूरी तरह से पानी फेर दिया है । उल्लेखनीय है कि क्युरेटर के रूप में अनिता दुबे के नाम की घोषणा का कला संसार में बड़े आश्चर्य तथा उत्साह के साथ स्वागत किया गया था । एक बड़े आयोजन की बागडोर एक महिला कलाकार को सौंपे जाने को प्रगतिशील और बड़े बदलाव के रूप में देखा/पहचाना गया । अपने काम में सामाजिक स्थितियों व अंतर्विरोधों को विषय बनाने के कारण अनिता दुबे को एक राजनीतिक चित्रकार के रूप में भी देखा/पहचाना जाता है - और इस कारण से भी उन्हें क्युरेटर बनाने के फैसले को व्यापक सोच से प्रेरित फैसले के रूप में देखा/समझा गया; और इस नाते कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले का चौथा आयोजन महत्त्वपूर्ण हो उठा । क्युरेटर के रूप में अनिता दुबे ने कई देशों की यात्राएँ कीं और कलाकारों की खोज करने के साथ-साथ उनकी प्रस्तुतियों की व्यवस्था को देखने का काम किया । उनके प्रयासों के चलते देश-विदेश के कई कलाकार पिछले महीनों में कोच्ची आकर अपनी अपनी प्रस्तुतियों के लिए जगहों का मुआयना कर चुके हैं । आयोजन की तैयारियाँ बिलकुल अपने अंतिम दौर में ही थीं कि हैशटैग मीटू की काली छाया आयोजन पर पड़ गई । दरअसल कोच्ची बिएनाले फाउंडेशन द्वारा प्रत्येक दूसरे वर्ष केरल के फोर्ट कोच्ची में आयोजित होने वाला कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाले देश में समकालीन अंतर्राष्ट्रीय कला का सबसे बड़ा आयोजन तो है ही, इसकी पहचान एशिया के कुछेक बड़े आयोजनों के रूप में भी है, इसलिए इससे जुड़े बड़े व प्रमुख लोगों के हैशटैग मीटू अभियान में नाम आने से बिएनाले की छवि को व्यापक क्षति पहुँची है - और इससे बिएनाले की तैयारियाँ मुसीबत में फँस गई हैं । 
इसके अलावा, अनूप स्कारिआ का निधन भी लगता है कि कोच्ची-म्युज़िरिस बिएनाल के लिए एक श्राप की तरह रहा है । अनूप स्कारिआ हालाँकि कोच्ची बिएनाल से जुड़े हुए तो नहीं थे, लेकिन 1997 में कोच्ची में उनके द्वारा स्थापित किए गए काशी ऑर्ट कैफे ने कोच्ची में समकालीन कला के लिए जो स्थान और माहौल बनाया, वास्तव में उसी ने कोच्ची बिएनाल के लिए नींव का काम किया । काशी ऑर्ट कैफे की स्थापना के समय कोच्ची-एर्नाकुलम में प्रोफेशनल तरीके से काम/व्यवहार करने वाली कोई ऑर्ट गैलरी नहीं थी, और आधुनिक व समकालीन कला को लेकर यहाँ कोई माहौल नहीं था । अनूप स्कारिआ ने अपनी अमेरिकन पत्नी डोर्री यंगर के साथ मिलकर काशी ऑर्ट कैफे की स्थापना की और  कुछ ही वर्षों में यह आधुनिक व समकालीन कला परिदृश्य की मुख्य धारा का हिस्सा बन गया । कलाकारों को स्टुडियो की सुविधा देने तथा उनके लिए किए जाने वाले रेजीडेंसी आयोजनों के साथ-साथ अवॉर्ड की शुरुआत करने के कारण देश-विदेश के कलाकारों के लिए यह देश के मुख्य कला-केंद्रों में पहचाना जाने लगा । काशी ऑर्ट कैफे की कामयाबी ने कोच्ची में अन्य ऑर्ट गैलरीज को भी सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया, जिसके चलते कोच्ची में आधुनिक व समकालीन कला को लेकर जो माहौल बना - उसने ही कोच्ची बिएनाल के लिए 'रास्ता' बनाया/दिखाया । अनूप स्कारिआ के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि कोच्ची बिएनाल की शुरुआत के समय ही बीमारी व व्यवस्था संबंधी मुश्किलों का शिकार होने के चलते उन्हें काशी ऑर्ट कैफे तथा कोच्ची को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन उनके द्वारा स्थापित काशी ऑर्ट कैफे बिएनाले आने वाले देशी-विदेशी कलाकारों के लिए भावनात्मक रूप से दिलचस्पी का अड्डा रहा है । अनूप स्कारिआ के निधन से वह भावनात्मक संबंध खत्म हुआ है, और इसके चलते बिएनाले में रुचि रखने वाले कई लोग उदास हुए हैं । 

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