आशीष कुशवाह की कला पर आधारित एक फीचर रिपोर्ट को 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने सिंडिकेटेट बता/दर्शा कर कला के प्रति उसने अपनी दुर्भावना को प्रकट किया है, या क्रिटिक और क्यूरेटर उमा नायर से कोई हिसाब बराबर किया है ?
नई दिल्ली । आशीष कुशवाह की पेंटिंग्स की 'इन्हेरिटेंस ऑफ लॉस' शीर्षक से दिल्ली
के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 19 मई से आयोजित हो रही एकल प्रदर्शनी पर
'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने एक समीक्षात्मक टिप्पणी प्रकाशित कर उक्त टिप्पणी को
जिस तरह से सिंडीकेट द्वारा प्रायोजित बताया है, वह कला के प्रति समाचार
पत्रों की बेरुखी और भेदभावपरक व दुर्भावनापूर्ण सोच का दिलचस्प उदाहरण है ।
उल्लेखनीय है कि कोई भी समाचार पत्र अपने लिए कई माध्यमों और तरीकों से
खबरें और आलेख जुटाता है - उसका अपना स्टॉफ होता है, वह कई न्यूज और फीचर
एजेंसियों के साथ-साथ फ्रीलांसर्स की सेवाएँ लेता है । इनके अलावा, उसके
पास प्रेस रिलीज आती हैं - जिनमें दी गई सूचनाओं को उसका हवाला देकर
प्रकाशित किया जाता है । समाचार पत्रों में जो खबरें 'प्लांट' भी होती हैं,
उन्हें भी इन्हीं 'रास्तों' से गुजरना होता है । खबरों का प्लांट होना
यूँ तो बुरा समझा जाता है, लेकिन मीडिया जगत में इसे एक 'आवश्यक बुराई' के
रूप में स्वीकार कर लिया गया है - और मान लिया गया है कि इससे बच पाना
असंभव ही है । दूसरे क्षेत्रों की तरह कला के क्षेत्र में भी मीडिया को
मैनेज करने के प्रयास होते ही हैं - कुछ लोग यह काम व्यक्तिगत प्रभाव से
करते हैं, तो कुछ लोग पीआर कंपनियों और विज्ञापन कंपनियों की मदद से करते
हैं; और यह सब पर्दे के पीछे के काम होते हैं । पर्दे पर तो खबर और या
फीचर आलेख ही नजर आता है ।
ऐसे में, आशीष कुशवाह की कला पर लिखी एक फीचर रिपोर्ट को खुद अखबार द्वारा सिंडिकेटेट बताना अखबार की बदनीयती को जाहिर करता है । सिंडीकेट शब्द दरअसल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में एक बड़ा बदनाम शब्द है - जो षड्यंत्रपूर्ण कार्रवाई को अंजाम देने वाले समूह के लिए इस्तेमाल होता है । अब आशीष कुशवाह की कला पर लिखी गई फीचर रिपोर्ट - और उसे प्रकाशित करवाने की कोशिशों में षड्यंत्र जैसा भला क्या है ? 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को उक्त रिपोर्ट हो सकता है कि आशीष कुशवाह ने खुद भेजी हो, या अपने चित्रों की प्रदर्शनी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उन्होंने जिस पीआर एजेंसी को सौंपी होगी - उसने भेजी होगी; हो सकता है कि जिस भी माध्यम से 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को यह रिपोर्ट मिली होगी, उसके साथ उसका कोई नियमित करार नहीं होगा, और अखबार को यह रिपोर्ट एक प्रेस रिलीज के रूप में मिली होगी; यह सभी तरीके जायज और मान्य तरीके ही हैं - और इसके लिए सिंडीकेट जैसा शब्द इस्तेमाल करना फीचर आलेख को एक षड्यंत्र का हिस्सा बना देता है । अमेरिकी और यूरोपीय देशों की मीडिया में प्रेस रिलीज के रूप में प्राप्त होने वाली कला संबंधी रिपोर्ट्स को प्रेस रिलीज से साभार दर्ज करते हुए प्रकाशित किया जाता है । भारत में प्रेस रिलीज के रूप में प्राप्त कला रिपोर्ट्स को (या अन्य दूसरे क्षेत्र की रिपोर्ट्स को भी) प्रकाशित करते हुए अखबार प्रायः इस बात को गोल ही कर जाते हैं । ऐसे में यह वास्तव में हैरान करने वाली बात है कि संदर्भित रिपोर्ट को सिंडिकेटेट बताने/दर्शाने का काम 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने आखिर क्यों किया ?
ऐसे में, आशीष कुशवाह की कला पर लिखी एक फीचर रिपोर्ट को खुद अखबार द्वारा सिंडिकेटेट बताना अखबार की बदनीयती को जाहिर करता है । सिंडीकेट शब्द दरअसल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में एक बड़ा बदनाम शब्द है - जो षड्यंत्रपूर्ण कार्रवाई को अंजाम देने वाले समूह के लिए इस्तेमाल होता है । अब आशीष कुशवाह की कला पर लिखी गई फीचर रिपोर्ट - और उसे प्रकाशित करवाने की कोशिशों में षड्यंत्र जैसा भला क्या है ? 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को उक्त रिपोर्ट हो सकता है कि आशीष कुशवाह ने खुद भेजी हो, या अपने चित्रों की प्रदर्शनी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उन्होंने जिस पीआर एजेंसी को सौंपी होगी - उसने भेजी होगी; हो सकता है कि जिस भी माध्यम से 'बिजनेस स्टैंडर्ड' को यह रिपोर्ट मिली होगी, उसके साथ उसका कोई नियमित करार नहीं होगा, और अखबार को यह रिपोर्ट एक प्रेस रिलीज के रूप में मिली होगी; यह सभी तरीके जायज और मान्य तरीके ही हैं - और इसके लिए सिंडीकेट जैसा शब्द इस्तेमाल करना फीचर आलेख को एक षड्यंत्र का हिस्सा बना देता है । अमेरिकी और यूरोपीय देशों की मीडिया में प्रेस रिलीज के रूप में प्राप्त होने वाली कला संबंधी रिपोर्ट्स को प्रेस रिलीज से साभार दर्ज करते हुए प्रकाशित किया जाता है । भारत में प्रेस रिलीज के रूप में प्राप्त कला रिपोर्ट्स को (या अन्य दूसरे क्षेत्र की रिपोर्ट्स को भी) प्रकाशित करते हुए अखबार प्रायः इस बात को गोल ही कर जाते हैं । ऐसे में यह वास्तव में हैरान करने वाली बात है कि संदर्भित रिपोर्ट को सिंडिकेटेट बताने/दर्शाने का काम 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने आखिर क्यों किया ?
इस
मामले में संभावनारूपी सवाल यह भी पैदा होता है कि आशीष कुशवाह की कला पर आधारित रिपोर्ट कहीं उमा नायर और 'बिजनेस
स्टैंडर्ड' में
कला संबंधी रिपोर्ट्स के संपादक के बीच की किसी हुड़क का तो शिकार नहीं हो
गई है, जिसका बदला संपादक ने रिपोर्ट को सिंडिकेटेट बता/दर्शा कर लिया है ।
अखबारों में इस तरह की 'हरकतें' होती रहती हैं । यह संभावना इसलिए है क्योंकि आशीष
कुशवाह की पेंटिंग्स की होने वाली प्रदर्शनी को उमा नायर ने ही क्यूरेट
किया है, और संभवतः उन्होंने ही इस प्रदर्शनी के मीडिया प्रबंधन का काम भी
संभाला हुआ है । भारतीय कला जगत में उमा नायर एक जाना/पहचाना नाम है; वह
करीब तीन दशकों से ऑर्ट क्रिटिक और क्यूरेटर की भूमिका निभा रही हैं और
अपने आप को 'क्रिटिक कार्निवोर' कहती हैं । इस कारण से कला जगत के एक
हिस्से में उन्हें आलोचना का शिकार और निशाना भी बनना पड़ा है । दरअसल उनके
कुछेक असाइनमेंट कला जगत के लोगों को उनकी पहचान और प्रतिष्ठा के अनुरूप
नहीं लगे हैं, और इसीलिए जब तब उनकी आलोचना हुई है । इसी से शक जाता है कि आशीष कुशवाह की कला पर
आधारित रिपोर्ट को 'बिजनेस स्टैंडर्ड' द्वारा सिंडिकेटेट बताने/दर्शाने के
पीछे उनकी उक्त आलोचना का कोई संदर्भ भी संभवतः रहा हो ।
'बिजनेस
स्टैंडर्ड' ने जो किया, उससे उसकी दुर्भावना का तो पता चलता है, पर अभी तक
यह नहीं पता चला है कि खुद उमा नायर इस मामले को कैसे देखती हैं ? अभी तक
यह नहीं पता चला है कि 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ने उनके द्वारा क्यूरेट की जा
रही एक प्रदर्शनी से संबंधित रिपोर्ट को जिस तरीके से सिंडिकेटेट बताया है,
वह उन्हें सामान्य बात लगी है - या
उसका उन्हें बुरा लगा है; और यदि उन्हें बुरा लगा है तो उन्होंने उस पर
क्या कार्रवाई की है ? और या 'बिजनेस स्टैंडर्ड' की इस दुर्भावना को अनदेखा
करते हुए वह आगे बढ़ जाना चाहती हैं ?
Comments
Post a Comment