नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट के डायरेक्टर जनरल अद्वैत गडनायक के अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के साथ-साथ हकु शाह जैसे प्रतिष्ठित कलाकार की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने ने नेशनल गैलरी के भविष्य के प्रति लोगों को सशंकित कर दिया है
नई
दिल्ली । राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न ऑर्ट) के
डायरेक्टर जनरल अद्वैत गडनायक अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने की कोशिशों
तथा वरिष्ठ चित्रकार हकु शाह को अपमानित करने के गंभीर आरोपों की चपेट में
आ गए हैं ।
अद्वैत गडनायक ने करीब छह माह पहले, नवंबर 2016 में ही उक्त पद संभाला है ।
उनके अतीत के कारण उनकी नियुक्ति पर भी विवाद हुआ था । वह ओडिसा में
भारतीय जनता पार्टी की ऑर्ट एंड कल्चर इकाई के संयोजक रहे हैं, और
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में शामिल होते रहे हैं - जिस कारण से
उनकी नियुक्ति में राजनीतिक पक्षपात देखते हुए उनकी नियुक्ति को
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के भविष्य के संदर्भ में अच्छे रूप में
नहीं लिया गया था । अद्वैत चूँकि ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय अवॉर्ड
प्राप्त एक प्रतिभाशाली शिल्पकार हैं, इसलिए उनकी नियुक्ति पर हालाँकि वैसा
विवाद नहीं हुआ, जैसा कि फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट में गजेंद्र
चौहान की नियुक्ति पर हुआ था । खुद अद्वैत ने भी अतीत से पीछा छुड़ाने
की कोशिश करते हुए मामले को होशियारी से हैंडल किया । अपने राजनीतिक
संबंधों को लेकर पूछे जाने वाले सवालों को टालते हुए उन्होंने हमेशा यही
दोहराया कि 'मैं एक शिल्पकार हूँ, और राजनीति पर बात करने की बजाए पत्थरों
को तराशने की विधा पर बात करना पसंद करूँगा ।' राष्ट्रीय आधुनिक कला
संग्रहालय के डायरेक्टर जनरल होने के बाद उन्होंने हमेशा यही दोहराया कि
'एक कलाकार के रूप में मेरा राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है ।' इस
तरह की बातों से अद्वैत गडनायक अपनी नियुक्ति के पीछे के राजनीतिक प्रभावों व संदर्भों के कारण
छिड़ने वाले विवाद को ठंडा करने में कामयाब रहे - और गजेंद्र चौहान जैसी
फजीहत का शिकार होने से बच गए थे ।
अद्वैत गडनायक नियुक्ति के समय तो अपने राजनीतिक संबंधों के कारण विवाद में फँसने से बच गए, लेकिन पिछले दिनों बाबा योगेंद्र को संग्रहालय में आमंत्रित करने और तवज्जो देने के कारण अपने लिए मुसीबत को आमंत्रित कर बैठे । बाबा
योगेंद्र का आधुनिक कला से कोई लेना-देना नहीं है, और न ही वह संग्रहालय
या उसके प्रवर्तक संस्थानों में किसी प्रशासनिक पद पर हैं - उनका परिचय
सिर्फ इतना है कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक इकाई संस्कार भारती
के संस्थापक सदस्य हैं । ऐसे में, उन्हें आमंत्रित किए जाने तथा तवज्जो
देने को लेकर सवाल उठे कि अद्वैत गडनायक अब क्या बाबा योगेंद्र जैसे लोगों
के सहारे दिल्ली को ग्लोबल ऑर्ट हब बनायेंगे ? उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय
आधुनिक कला संग्रहालय के डायरेक्टर जनरल नियुक्त होने के बाद उन्होंने
दावा किया था कि वह दिल्ली को ग्लोबल ऑर्ट हब बनायेंगे । लेकिन उनकी देखरेख
में संग्रहालय में होने वाली गतिविधियाँ उनके इस दावे को तो संदेहास्पद
बनाती ही हैं, साथ ही संग्रहालय के भविष्य के प्रति भी आशंकित करती हैं ।
अद्वैत गडनायक ने एक कमाल और किया - केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा
से उन्होंने संग्रहालय में कला का परिचय प्राप्त करने आए छात्रों को पाठ
पढ़वा दिया । महेश शर्मा संस्कृति मंत्रालय के मंत्री जरूर हैं, लेकिन पेशे
से वह डॉक्टर हैं - कला के बारे में उन्हें कितना क्या ज्ञान होगा, इसे सहज
ही समझा जा सकता है ! वह मंत्री हैं, इसलिए वह किसी साँस्कृतिक
कार्यक्रम का उद्घाटन करें और उद्घाटन करते हुए कला व संस्कृति के बारे में
'दो शब्द' कह दें - वह एक अलग बात है; लेकिन संग्रहालय में कला का परिचय
प्राप्त करने आए छात्रों को ज्ञान देने का काम उनसे करवाया जाए, यह उनके
साथ-साथ कला का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले छात्रों के साथ भी अन्याय तो है ही - कला के साथ भी मजाक करने जैसा
है । अद्वैत गडनायक ने ऐसा करके अपना मजाक और बनवा लिया ।
अद्वैत
गडनायक ने इन कामों से भी बड़ा काम संग्रहालय में 'स्वच्छता पखवाड़ा' बनाने
का किया । राष्ट्रीय संग्रहालय में साफ-सफाई रहे, यह भला कौन नहीं चाहेगा -
लेकिन कला के राष्ट्रीय संग्रहालय की तरफ से कला गतिविधियों और कलाकृतियों
को प्रचारित करने की बजाए, साफ-सफाई के काम को कई कई दिनों तक तमाम तमाम
तस्वीरों के जरिए प्रचारित किया जाए, तो यह बड़ी अनहोनी सी बात तो हो ही
जाती है । अद्वैत गडनायक अभी तक शायद यह नहीं समझ पाए हैं कि राष्ट्रीय
आधुनिक कला संग्रहालय जैसे देश के एक बड़े और प्रतिष्ठित संस्थान के
डायरेक्टर जनरल वह झाड़ु लेकर संस्थान की साफ-सफाई करने के लिए नहीं
बने/बनाए गए हैं, यह काम तो संग्रहालय की प्रशासनिक व्यवस्था के किसी
अधिकारी का होगा - और उनका काम तो सिर्फ यह सुनिश्चित करना होगा कि उक्त
अधिकारी अपना काम ठीक से करे; झाड़ु लेकर सफाई करने का नाटक करना तो नेताओं
की अदा है; राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के डायरेक्टर जनरल के रूप
में अद्वैत गडनायक ने भी यदि नेताओं वाली अदा अपना ली है, और साफ-सफाई को जरूरत की बजाए 'नाटक' बना लिया है, तो समझ लेना
चाहिए कि उनका उद्देश्य साफ-सफाई नहीं - बल्कि 'कुछ' और ही है, तथा इस
'कुछ' और का संबंध कम से कम कला से तो नहीं ही है ।
राष्ट्रीय
आधुनिक कला संग्रहालय के डायरेक्टर जनरल के रूप में अद्वैत गडनायक ने यह
जो कुछ किया, उसे तो अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने की उनकी मजबूरी के
रूप में देखा/पहचाना जा सकता है, किंतु हकु शाह जैसे वयोवृद्ध प्रतिष्ठित
कलाकार के साथ उन्होंने जो किया - वह बहुत ही शर्मनाक है । अद्वैत
गडनायक पिछले दिनों अहमदाबाद में हकु शाह के घर गए थे, जिस मौके की तस्वीर
उन्होंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर लगाई है - जिसमें उम्र के बोझ और शायद
बीमारी के कारण हकु शाह बड़ी निरीह और असहाय स्थिति में दिख रहे हैं ।
बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी से कला की औपचारिक शिक्षा प्राप्त हकु शाह
दुनिया की प्रतिष्ठित कलादीर्घाओं में अपने चित्रों की एकल प्रदर्शनियाँ
चुके हैं और अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में प्रोफेसर चुके हैं
। वह पद्मश्री
हैं । इससे जाहिर है कि वह समकालीन भारतीय कला की दुनिया की एक बड़ी
प्रतिष्ठित हस्ती हैं । 1934 में जन्मे हकु शाह फिलहाल लेकिन उम्र के बोझ
और शायद बीमारी के चलते शरीर से लाचार और असहाय वाली स्थिति में हैं - उनके
लाचार और असहाय शरीर के बगल में अकड़ के साथ अपने तनकर बैठे होने की तस्वीर
शेयर करके अद्वैत गडनायक ने यही साबित किया है कि एक व्यक्ति और एक
वयोवृद्ध कलाकार की गरिमा के प्रति उनके मन में कोई सम्मान नहीं है । एक
वयोवृद्ध कलाकार की गरिमा को डायरेक्टर जनरल पद की अपनी अकड़ से रौंदते हुए
उन्होंने वास्तव में यही जताया है कि पत्थरों को तराशने का हुनर उनमें भले
ही हो, लेकिन व्यक्ति की निजी गरिमा का सम्मान करना उन्होंने नहीं सीखा है
। अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के साथ-साथ हकु शाह जैसे
प्रतिष्ठित कलाकार की गरिमा के साथ किए गए उनके खिलवाड़ ने उनके नेतृत्व में
राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के भविष्य के प्रति लोगों को सशंकित कर
दिया है ।
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