'ब्रुसेल्स ऑर्ट' और 'दुबई ऑर्ट' जैसे प्रमुख और प्रतिष्ठित विश्व कला आयोजनों में भारतीय कला की अनुपस्थिति और या नाममात्र की ही मौजूदगी कलाकारों और गैलरीज की कमजोरियों का ही नतीजा नहीं है क्या ?

भारतीय चित्रकारों की पेंटिंग्स के ऊँचे दामों में बिकने की जब-तब मिलने वाली खबरें विश्व कला बाजार में भारतीय कला की जिस 'गुलाबी तस्वीर' का आभास देती हैं, वास्तविकता लेकिन ठीक उसके विपरीत है । विश्व कला बाजार में एशियाई कला को चाइनीज कला और जापानी कला के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है और भारतीय कला का वहाँ कोई नामलेवा ही नहीं है । इसे हाल-फिलहाल के दिनों में आयोजित हो रहे 'ऑर्ट ब्रुसेल्स' और 'ऑर्ट दुबई' जैसे अंतर्राष्ट्रीय कला मेलों के विवरणों में देखा/पहचाना जा सकता है । यूरोप के पुराने और प्रमुख कला मेले के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले 'ऑर्ट ब्रुसेल्स' को लेकर पश्चिमी मीडिया में इन दिनों खूब चर्चा है । न्यूयॉर्क टाइम्स ने भीड़भाड़ वाले विश्व कला परिदृश्य में इसे 'असाधारण' की संज्ञा दी है । 19 से 22 अप्रैल के बीच आयोजित हो रहे ऑर्ट ब्रुसेल्स के पचासवें संस्करण में 32 देशों की 147 गैलरीज भाग ले रही हैं, जिनमें 111 गैलरीज ऐसी हैं जो पिछले वर्षों में भी यहाँ शामिल हो चुकी हैं और 36 गैलरीज ऐसी हैं जो पहली बार ऑर्ट ब्रुसेल्स का हिस्सा बन रही हैं । आयोजनकर्ताओं का कहना है कि ऑर्ट ब्रुसेल्स के पचासवें संस्करण को सचमुच 'अंतर्राष्ट्रीय' स्वरूप देने के लिए उन्होंने विश्व की प्रख्यात ब्ल्यू चिप गैलरीज की भागीदारी को यहाँ संभव बनाया है, जो विश्व पहचान रखने वाले कलाकारों की कृतियों को यहाँ प्रदर्शित करेंगे । ऑर्ट ब्रुसेल्स के पचासवें संस्करण में भाग ले रही 147 गैलरीज की सूची में लेकिन एक भी भारतीय गैलरी का नाम नहीं है । दुबई और यूरोप व अमेरिका की गैलरीज जिन कलाकारों को यहाँ प्रदर्शित कर रही हैं, उनमें भी किसी भारतीय कलाकार का नाम देखने को नहीं मिला है । जबकि चीन की तीन गैलरीज यहाँ शामिल हो रही हैं और कई चाईनीज कलाकारों के काम को दुबई, यूरोप व अमेरिका की गैलरीज भी प्रदर्शित कर रही हैं ।
21 से 24 मार्च के बीच आयोजित हो रहे 'ऑर्ट दुबई' के 12वें संस्करण में 48 देशों की जो 107 गैलरीज शामिल हो रही हैं, उनमें हालाँकि भारत की 4 गैलरीज हैं, और दुबई की एक गैलरी एक भारतीय कलाकार का काम प्रदर्शित कर रही है - लेकिन 'ऑर्ट दुबई' में मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और अफ्रीकी देशों के कलाकारों की मौजूदगी के सामने यह कुछ खास नहीं है । चीन की बात तो छोड़िये, 'ऑर्ट दुबई' में पाकिस्तान तक के कलाकारों की अच्छी उपस्थिति है । इससे जाहिर है कि न तो अंतर्राष्ट्रीय कला के संग्राहकों व खरीदारों की भारतीय कला में दिलचस्पी है और न ही भारतीय कला गैलरीज की तरफ से विश्व परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को लेकर कोई उत्सुकता और या स्पष्ट मार्केटिंग रणनीति है । विश्व बाजार में भारतीय कला की मार्केटिंग को लेकर चूँकि कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई, इसलिए विश्व बाजार में भारतीय कला की स्थिति बहुत ही शोचनीय है । केपीएमजी व फिक्की की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय कला बाजार में भारतीय कला की हिस्सेदारी मुश्किल से 0.5 प्रतिशत है । इसका भी बड़ा भाग एमएफ हुसेन, एसएच रजा, जे स्वामीनाथन, तैयब मेहता, अमृता शेरगिल, अकबर पदमसी, मनजीत बावा, एफएन सूजा, रामकुमार, वीएस गायतोण्डे, भूपेन खख्खर आदि-इत्यादि वरिष्ठ कलाकारों की जेब में है । इन्हें गिनती में यदि न लें तो अंतर्राष्ट्रीय कला बाजार में भारत की कोई पहचान या उपस्थिति नहीं है । 25 से 55 वर्ष की उम्र के कुछेक कलाकारों द्वारा समकालीन कला के विश्व बाजार में यदाकदा 'धमाके' करने की खबरें सुनी/पढ़ी तो जाती हैं, लेकिन समकालीन कला के बाजार में भारतीय कलाकारों की उपस्थिति दाल में नमक बराबर भी मुश्किल से ही है ।
अंतर्राष्ट्रीय कला बाजार की जानकारी रखने वाले लोगों के अनुसार, इसका प्रमुख कारण हमारी समकालीन कला का खराब क्वालिटी का होना है । कुछेक अपवादों को छोड़ कर अधिकतर कलाकार तकनीकी रूप से बेहद कमजोर होने के साथ-साथ कल्पनाशील और प्रयोगवादी भी नहीं हैं । भारतीय समकालीन कला को मामूली, अरोचक, नीरस, सतही, अमौलिक और नकली माना/पहचाना जाता है । इंडिया ऑर्ट फेयर तथा कोच्ची मुजिरिस बिएन्नाले जैसे आयोजनों में दूसरे देशों के समकालीन कलाकारों के मुकाबले भारतीय कलाकारों की 'दरिद्रता' साफ देखी/पहचानी जा सकती है । यही कारण है कि समकालीन भारतीय कला विश्व कला बाजार के खरीदारों और संग्राहकों के बीच कोई रोमांच और या आकर्षण पैदा नहीं कर पाती है । विश्व बाजार तो छोड़िए, समकालीन कला ने भारतीय बाजार में भी कोई उत्साह नहीं जगाया है । भारत में कला की बिक्री को लेकर दरअसल कोई माहौल बनाने का प्रयास ही नहीं हुआ । प्रयास के नाम पर गैलरीज, ऑक्शनर्स, इन्वेस्टर्स के साथ मिल कर कलाकारों ने मनमाने तरीके से ऊँचे दाम रखने/बनाने का जो खेल किया, उसने खरीदारों को ठगे जाने का अहसास कराया तथा उनके बीच अविश्वास पैदा किया । ठगी की इस हरकत के चलते बने/पैदा हुए अविश्वास ने भारत में कला बाजार 'बनने' की प्रक्रिया को ही बाधित कर दिया । यहाँ कला के खरीदारों के बीच कोई सौंदर्य-शास्त्रीय 'समझ' ही नहीं बन पाई है । यहाँ जो बाजार है भी, उस पर भी वरिष्ठ कलाकारों का ही कब्जा है ।
भारत में कला बाजार की स्थिति यदि शोचनीय है, तो इसका कारण यह भी है कि यहाँ कला को लेकर पेशेवर नजरिये और व्यवस्था का ही अभाव है । दयनीय और निराश करने वाला तथ्य यह है कि चीन में जहाँ चार हजार के करीब कला संग्रहालय हैं, वहीं भारत में कला संग्रहालयों की संख्या मुश्किल से चालीस ही होगी । भारत में कला स्कूलों की दशा भी लगातार खराब ही होती जा रही है । एक समय शांतिनिकेतन के कला भवन, मुंबई के सर जेजे स्कूल और बड़ौदा की एमएस यूनिवर्सिटी की जो प्रतिष्ठा थी और वह जिस तरह अगली पीढ़ी के कलाकारों को प्रशिक्षित व प्रेरित करते थे, वह अब बीते जमाने की बातें हो गईं हैं । हमारे कलाकारों की भी कमी कम नहीं हैं । उनमें लगन और साधना का अभाव तो है ही, दूरदृष्टि, आत्मविश्वास और जिज्ञासा की भी कमी है । संकुचित दृष्टिकोण, जिंदगी के अनुभवों की कमी, बौद्धिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उदासीनता और निष्क्रियता के चलते छोटी-मोटी उपलब्धियों में ही संतुष्ट हो जाने की प्रवृत्ति उनके सृजनात्मक जीवन को बहुत छोटा बना देती है, जिसके चलते वह अपनी प्रतिभा का समुचित उपयोग ही नहीं कर पाते हैं । चौतरफा कमजोरियों के कारण ही यह हाल है कि 'ब्रुसेल्स ऑर्ट' और 'दुबई ऑर्ट' जैसे प्रमुख और प्रतिष्ठित विश्व कला आयोजनों में भारतीय कला व कलाकारों की या तो कोई कोई उपस्थिति नहीं हैं और या नाममात्र की ही मौजूदगी है ।

Comments

  1. बिल्कुल सही ,भारतीय कला इसी स्थिति का शिकार हो रही है।ऐसा नही की भरर सृजनात्मकता से रिक्त है लेकिन सुदूर अंचलों में जो कलाकार काम कर रहे है वो मेट्रोज में आ नही पाते औए मेट्रोज में जो तथाकथित रूप से आर्टिस्ट है वो ही भारतीय कला की नुमाइंदगी करते है। कारण एक नही समीक्षा के स्टार तक है ।क्योंकिशयड वह भी हमारी समझ की कमी ही नज़र आती है।जब हैम सही टूल ही नही पा रहे है तो उतकृष्ट क्या बताएंगे।पश्चिम ऐसी व्यवस्था का शिकार नज़र नही आता है।
    यही कारण भी है कि वो विश्वकलाका प्रतिनिधित्व करता है

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  2. 21, 2018 at 7:59 PM
    बिल्कुल सही ,भारतीय कला इसी स्थिति का शिकार हो रही है।ऐसा नही की भारत सृजनात्मकता से रिक्त है लेकिन सुदूर अंचलों में जो कलाकार काम कर रहे है वो मेट्रोज में आ नही पाते औए मेट्रोज में जो तथाकथित रूप से आर्टिस्ट है वो ही भारतीय कला की नुमाइंदगी करते है। कारण यही नही समीक्षा के स्तर तक है ।क्योंकि शायद यहां भी हमारी समझ की कमी ही नज़र आती है।जब हम सही तौल ही नही पा रहे है तो उतकृष्ट क्या बताएंगे।पश्चिम ऐसी व्यवस्था का शिकार नज़र नही आता है।
    यही कारण भी है कि वो विश्वकलाका प्रतिनिधित्व करता है

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