जैनुल आबेदिन का जन्मशताब्दी वर्ष

जैनुल आबेदिन का 28 मई 1976 को निधन तो बांग्लादेशी चित्रकार के रूप में हुआ था, लेकिन एक चित्रकार के रूप में दुनिया भर में उनकी पहचान ब्रह्मपुत्र श्रृंखला और अकाल श्रृंखला के चित्रों के रचयिता के चलते ही है - जो 1938 और 1944 के बीच रचे और पहली बार प्रदर्शित हुए थे । ब्रह्मपुत्र श्रृंखला के चित्रों पर उन्हें 1938 में आयोजित हुई अखिल भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी में गवर्नर्स गोल्ड मेडल मिला था । उस समय उनकी उम्र करीब 24 वर्ष की थी । इस उपलब्धि ने उन्हें कला में अपना निजी मुहावरा गढ़ने के लिए प्रेरित किया । 1943 के बंगाल के अकाल के वीभत्स दृश्यों को अपने चित्रों का विषय बना कर उन्होंने अपनी कला को सामाजिक चेतना का वाहक बनाने की दिशा में अप्रतिम काम किया । इस काम ने एक कलाकार के रूप में उन्हें दुनिया भर में विशिष्ट पहचान उपलब्ध करवाई । जैनुल आबेदिन ने अपने पूर्ववर्ती और समकालीन कलाकारों से हटकर इस बात को अधिक महत्वपूर्ण माना कि वह जिस कला-परंपरा में काम करें, वह उनकी सामाजिक चेतना का ही हिस्सा हो । लंदन में ऑर्ट स्कूल में दो वर्षीय पाठ्यक्रम पूरा करते हुए उन्होंने लोककला के स्रोतों की पहचान से अपने आप को समृद्ध किया । प्रगतिशील कलाकारों के 'कलकत्ता ग्रुप' के वह एक अहम सदस्य थे और 1948 में कुछेक अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर उन्होंने ढाका में पहले कला संस्थान की स्थापना की थी । बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध में उनकी सक्रिय भागीदारी रही थी और बांग्लादेश में कला और संस्कृति के पैमानों के पुनर्गठन में उनकी नेतृत्वकारी भूमिका थी । बांग्लादेश में उन्हें सबसे बड़े कला सम्मान 'शिल्पाचार्य' (ग्रेट टीचर ऑफ द ऑर्ट्स) से नवाजा गया था ।
29 दिसंबर 1914 को जन्मे जैनुल आबेदिन के लिए मौजूदा वर्ष जन्मशताब्दी वर्ष है । इस मौके पर हम यदि उन पहलुओं पर गौर कर सकें, जिनके कारण जैनुल आबेदिन को बंगाली कलाकार के रूप में उल्लेखनीय पहचान मिली, तो हमें उनकी प्रासंगिकता और समकालीनता दोनों को समझने में मदद मिल सकेगी ।
इसमें जिनकी दिलचस्पी हो और जो 23 अगस्त को दिल्ली में और या आसपास हों और आ सकते हों, तो पधारें :

 

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